tag:blogger.com,1999:blog-60734823210164557992024-03-07T02:45:03.621-08:00हसगुल्लेक्या कहा ? शुगर यानि डायबीटीज हॆ. तो भई! रसगुल्ले तो आप खाने से रहे.मॆडम! आपकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही. क्या कहा, ब्लड-प्रॆशर हॆ. तो आपकी दूध-मलाई भी गयी.सभी के सेवन हेतु, हम ले कर आये हॆं-हास्य-व्यंग्य की चाशनी में डूबे,हसगुल्ले.न कोई दुष्प्रभाव(अरे!वही अंग्रेजी वाला साईड-इफॆक्ट)ऒर न ही कोई परहेज.नित्य-प्रति प्रेम-भाव से सेवन करें,अवश्य लाभ होगा.इससे हुए स्वास्थ्य-लाभ से हमें भी अवगत करवायें.अच्छा-लवस्कार !विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-23545472845122664382020-05-04T22:51:00.000-07:002020-05-04T22:55:44.853-07:00मुख्यमंत्री के नाम बेवड़े का खुला पत्र!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुख्यमंत्री के नाम<br />
एक देशभक्त बेवड़े का खुला पत्र!<br />
<br />
माननीय मुख्यमंत्री जी,<br />
जयहिन्द!<br />
<br />
पूरे 37 दिन के लॉक डाउन के बाद,कल रात जब आपने टी. वी. पर घोषणा की,कि सोमवार से सभी दारू के ठेके खुल जायेंगे,तो कसम पव्वे की,मारे खुशी के सारी रात सो नहीं सका।मैंने मन ही मन आपके साथ- साथ माननीय प्रधानमंत्री जी का भी धन्यवाद दिया,जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के,ग्रीन,ऑरेंज और रेड ज़ोन में रह रहे हम सभी पियक्कड़ों का ध्यान रखा।ऐसी बात नहीं कि इतने दिन मैं पूरी तरह से सूफ़ी बना रहा।बोतल न सही,कहीं न कहीं से आधे-पव्वे का जुगाड़ तो कर ही लेता था।<br />
कल जब आपने कहा-कि सरकार की तिजोरी लगभग खाली हो चुकी है।एक-दो महीने बाद,सरकारी कर्मचारियों को तनख्वाह देने तक के पैसे आपके पास नहीं बचेंगे।जो बेचारे सरकारी कर्मचारी, अपनी जान की परवाह न करके,इस संकट की घड़ी में, दिन रात ड्यूटी कर रहे हैं,उन्हें समय पर तनख्वाह भी न मिले!यह तो बड़े शर्म की बात है! उसी समय मुझे लगा कि देश के लिए मुझे भी कुछ करना चाहिए।इसी देशभक्ति की भवना से प्रेरित होकर, मैंने आज पूरी एक पेटी दारू खरीदने का प्रोग्राम बनाया था।सोचा था मेरे इस अर्थिक सहयोग से,सरकार के ख़ज़ाने में कुछ तो इज़ाफा होगा।बेचारे सरकारी कर्मचारियों को समय पर तनख्वाह मिलेगी।उनके बच्चे मुझे दुआ देंगें।<br />
सच मानना भाई साहब! बिना कुछ खाये-पिये सुबह सुबह ही लाईन में लग गया था।मेरे जैसे कई देशभक्त पहले ही लाईन में लगे थे।कुछ मेरे बाद भी आये,इसलिए लाईन थोड़ी लंबी हो गयी।लोगों में देशभक्ति का जज़्बा इतना ज्यादा था कि सोशल डिस्टेंस वाले नियम तक को भूल गये।धक्का मुक्की शुरू हो गयी।बेचारे पुलिस वालों ने समझाया भी बहुत,लेकिन इन देशभक्तों ने उनकी एक न मानी।फिर क्या था-पुलिस वालों ने डंडे से,हम देशभक्तों की खूब सेवा की।ठेका भी बंद करवा दिया।<br />
देशभक्ति की जिस भावना से हम गये थे,उसे न तो पुलिस वाले समझ पाये और न आप!<br />
<br />
आपका शुभचिंतक<br />
एक देशभक्त बेवड़ा!<br />
<br /></div>
विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-91494754858819040442011-03-22T10:38:00.000-07:002011-03-22T10:40:54.303-07:00’लंगोट वाले बाबा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEii70I9ixhaUA9AGTLop5gzwJnSznC_xKXFBoYZNg-dDQvXn9OZe7QmijVaawh8x4Mc4zZLtrT5NXVlRrKO3W9HUvo-Cjg7IRHk9pb88529ZNZBclDLW94d2o8_zVjlncWqF4wmzji1kQLQ/s1600/%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A7%25E0%25A5%2581.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEii70I9ixhaUA9AGTLop5gzwJnSznC_xKXFBoYZNg-dDQvXn9OZe7QmijVaawh8x4Mc4zZLtrT5NXVlRrKO3W9HUvo-Cjg7IRHk9pb88529ZNZBclDLW94d2o8_zVjlncWqF4wmzji1kQLQ/s1600/%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A7%25E0%25A5%2581.jpg" /></a></div><br />
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;"><b><u><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">(</span></u></b><b><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">जो मित्र,अपने ब्लाग पर कम टिप्पणी आने से मेरी तरह दु:खी हॆ,कृपया एक बार पूरी पोस्ट अवश्य पढ ले,शायद उनका दु:ख भी कुछ कम हो जाये.)</span></b></div><div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;"><br />
</div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ध्यानमग्न थे ऒर भक्तगण बेचॆन.बाबा के शरीर पर सिर्फ एक नाममात्र का लंगोट था.उनके चेलों का कहना था कि बाबा तो एक दम प्राकृतिक अवस्था में ही रहना चाहते थे,लेकिन कुछ शिष्यों ने लोक-मर्यादा का वास्ता देकर</span>,<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा को लंगोट पहना ही दिया ऒर वे लंगोट वाले बाबा के नाम से पोपुलर हो गये.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा का आश्रम भक्तों से खचा-खच भरा था.दूर-दूर से लोग बाबा का आशिर्वाद लेने आये थे.आशिर्वाद लेने वालों में बच्चे,बडे,बूढे ऒरत व मर्द सभी शामिल थे.एक सेवादार ने बताया कि होली व दीवाली को यहां बहुत भीड होती हॆ.आज होली थी-इसलिए अन्य दिनों से भीड अधिक थी.सभी भक्त अपनी अपनी मनोकामना के साथ,बाबा से आशिर्वाद लेने के लिए सुबह 4 बजे से लाईन में लगे थे.रुटिन में तो, मॆं जब तक सुबह-सुबह पत्नी से दो-चार बार डांट नहीं खां लूं,इतने बिस्तर ही नहीं छोडता, लेकिन बाबा से आशिर्वाद लेने के लालच में,आज सुबह 5 बजे ही अपनी मनोकामना दिल में सजोये, आशिर्वाद लेने वालों की लाईन में लग गया.</span><o:p></o:p></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7Wgqw9Xro3gVTbaHKEBNMLL9lBWbnipb20uO4WkMk5nmzsCVsvdaBm2QZp7g067KCmZ-bQQCgkMkypgROUwk5ef0gDS2N3rfphBK7g1iQsqxAkxqUO-ZRmZrNfpRGP1wQ3QEHQEfyksDf/s1600/%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A7%25E0%25A5%2581.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7Wgqw9Xro3gVTbaHKEBNMLL9lBWbnipb20uO4WkMk5nmzsCVsvdaBm2QZp7g067KCmZ-bQQCgkMkypgROUwk5ef0gDS2N3rfphBK7g1iQsqxAkxqUO-ZRmZrNfpRGP1wQ3QEHQEfyksDf/s1600/%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25A7%25E0%25A5%2581.jpg" /></a></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">’लंगोट वाले बाबा की-जय!’</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">’लंगोट वाले बाबा की-जय!!’</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">अचानक बाबा के जयकारे से पंडाल गूंज उठा.मॆंने अपने साथ वाली लाईन में लगे एक भक्त से पूछा-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">क्या हुआ?</span>”<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">वो बोला-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा का ध्यान पूरा हुआ,अब वे आशिर्वाद देंगें</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मेरा दिल मारे खुशी के जोर-जोर से उछलने लगा.सोचा-आजतक अपने मन की जो बात,मॆं किसी को नहीं बता सका.बाबा को बताउंगा.उनके आशिर्वाद से मेरी मनोकामना अवश्य पूरी होगी.आखिर! बहुत पहुंचे हुए हॆं-ये लंगोट वाले बाबा.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">पहला नंबर-एक युवा महिला का था, जो शायद अपनी बुजुर्ग सास के साथ आई थी.बाबा अपने आसन पर जमे बॆठे थे ऒर उनके दो चेले, दाये-बांए एक-दम अलर्ट खडे हुए थे.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">क्या समस्या हॆ?</span>”<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> बाबा ने सामने खडी युवती से पूछा.युवती चुप रही.उसे अपनी समस्या बतानें में शायद कुछ संकोच था.उसके साथ खडी,उसकी सास बोल पडी-</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">’बाबा! इसकी शादी को 8 साल हो गये-लेकिन अभी तक...</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">’हां,हां-बाबा सब जानते हॆ-बच्चा चाहिए.....चल ले ले आशिर्वाद!’</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा कुछ नहीं बोले.लेकिन दाये खडे चेले ने कहा.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">सास-बहु दोनों बाबा के सामने दंडवत.बाबा ने दोनों के सिर पर हाथ रख दिया.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">दूसरे चेले ने-अगले भक्त को बुला लिया,जो एक बेरोजगार युवक था.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा! एम.ए. तक पढा हूं,लेकिन नॊकरी के लिए पिछले 6 साल से धक्के खा रहा हूं .’-युवक ने बाबा के सामने अपना रोना रोया.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा का चेला बोला-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बेटा! जरुर हिन्दी से एम.ए. किया होगा...वर्ना कोई न कोई धंधा तो,अब तक मिल ही जाता....कोई बात नहीं,..बाबा के आशिर्वाद से सब ठीक हो जायेगा...चल तू भी ले ले-बाबा का आशिर्वाद!</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">एक-एक करके भक्त बाबा के सामने अपनी-अपनी समस्या रखते जा रहे थे ऒर बाबा के पास सभी मर्जों की एक ही दवा थी-वो था आशिर्वाद.किसी पति-पत्नि में झगडा था तो कहीं सास बहु में.कोई अपनी गरीबी को लेकर परेशान था तो कोई अधिक दॊलत को लेकर होने वाले पारिवारिक क्लेश को लेकर.बाबा आशिर्वाद दे रहे थे ऒर भक्त बडी श्रृद्धा से उसे ले रहे थे.मेरा नम्बर भी बस आने ही वाला था.दिल धक-धक करने लगा.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">.दर-असल मेरी समस्या कुछ अलग टाईप की थी.मॆं इसी दुविधा में था कि अपने मन की बात बाबा को कॆसे समझाउंगा?तभी बाबा के एक चेले ने मुझे आवाज लगा दी-</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> ओ! चश्में वाले अंकल!-कहां खोया हॆ? नंबर आ गया-फटाफट बोल.</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मॆंने बाबा के चरण छूए ऒर उनके दोनों शिष्यों को भी प्रणाम किया.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">क्या कष्ट हॆ बच्चा?</span>”<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> बाबा ने पूछा</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मॆं एक ब्लागर हूं-बाबा’ मॆंने कहना शुरु किया</span>.”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा-पुराने जमाने के थे.शायद ब्लागिंग से अनजान थे.उन्होंने एक बार मुझे घूरकर देखा तथा दूसरी बार अपने शिष्यों की ओर.उनका एक शिष्य शायद कम्यूटर,ई-मेल, ब्लागिंग इत्यादि के बारें में जानता था.उसने बाबा को समझाने का प्रयास किया-</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ये एक ब्लाग-लेखक हॆं</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">ब्लाग-लेखक</span>?<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">.... लेखक तो सुना था ये ब्लाग-लेखक नाम का नया जीव कहां से आ गया?</span>”<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> बाबा ने आश्चर्य से पूछा?</span>“<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">चेले ने बाबा को फिर समझाने की कॊशिश की-</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> बाबा! यह मान लो कि ये भी एक तरह का लेखक ही होता हॆ-यह बात अलग हॆ कि कुछ पुरातनपंथी लेखक इसे अपनी बिरादरी में अभी भी अछूत ही समझते हॆ.</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मुझे लगा बाबा को कुछ </span>–<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">कुछ समझ आ गया.बाबा बोले-</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">अपनी समस्या बताओ</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मॆंने फिर कहना शुरु किया-</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal" style="text-indent: .5in;">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा! मॆंने कई ब्लाग बना रखे हॆं.पिछले 3-4 साल से,उनपर लिख रहा हूं.मेरे कई ब्लागर साथी हॆं, जिन्होंने अभी 1-2 साल पहले ही लिखना शुरु किया हॆ.मॆं जब भी कोई पोस्ट लिखता हूं उसपर 6-7 कमेंट्स से ज्यादा नहीं आते,जबकि मेरे अन्य ब्लागर साथियों के ब्लागों पर कमेंट्स की बाढ आ जाती हॆ.उनकी किसी-किसी पोस्ट पर तो 70-70,80-80</span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">तक कमेंटस मिल जाते हॆं.अपने ब्लाग पर इतने कम कमेंटस ऒर दूसरे के ब्लाग पर इतने ज्यादा? यह कहां का न्याय हॆ-बाबा? मुझे बडी आत्मग्लानी होती हॆ?</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">कुछ ऎसा उपाय बताओ,जिससे मेरे ब्लाग पर भी थोक मेँ कमेंट्स आने लगेँ</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मेंने अपने मन की सारी पीडा एक ही सांस में बाबा को बता दी.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ने एक गहरी सांस ली ऒर फिर से अपने उसी शिष्य की ओर देखा-जिसने पहले बाबा को ’ब्लाग-लेखक’ के बारे में बताया था.शिष्य बाबा का इशारा समझ गया.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">शिष्य़ ने बाबा को समझाते हुए कहा-</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal">“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ये नये जमाने के लेखक हॆं.वह जमाना गया जब लेखक को लिखने के लिए कागज, पॆन, पत्रिका,संपादक,प्रकाशक आदि की जरुरत पडती थी.लेखकों को अपनी रचना अखबार,पत्रिका में छ्पवाने के लिए न जाने कितने पापड बेलने पडते थे.अब तो सब कुछ फटा-फट हॆ.खुद ही लिखो ऒर खुद ही छापों.चाहे जो लिखो,चाहे जो छापो-न तो संपादक की कॆंची का डर ऒर न ही रचना वापस आने का.बस एक कम्पयूटर ऒर उसमें इन्टरनॆट का कनॆक्शन</span>, <span lang="HI" style="font-family: Mangal;">आ गयी दुनिया मुट्टी में.इधर लिखा,उधर छपा ऒर तुरंत कमेन्ट्स.इंतजार करने का कोई मतलब ही नहीं.</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा,शिष्य की बात सुनकर मंद-मंद मुस्कराने लगे.मुझे लगा बाबा मेरी पीडा को समझ रहे हॆं.अवश्य ही कोई इसका उपाय बतायेंगें.मॆं बाबा के मुंह की ओर ताकने लगा.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ने पूछा-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">अच्छा! उन ब्लागर्स के नाम बता-जो तुझसे जुनियर हॆं लेकिन उनके ब्लाग पर कमेंटस तेरे से ज्यादा आते हॆं?</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मॆं बोला-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ! एक दो होता तो मॆं सब्र का घूंट पी भी लेता,लेकिन यहां तो ऎसे ब्लागरों की लाईन लगी पडी हॆ.मेरे ब्लाग पर आकर वे कभी कमेंटस भी करते हॆं,तो ऎसा लगता हॆ जॆसे मेरी खिल्ली उडा रहे हॆ.एक हॆ कोई <b><u>राजकमल शर्मा-</u></b>जहां मर्जी लट्ठ लेके खडा हो जायेगा,जिससे चाहे पंगा ले लेगा.कमेंट्स बटोरने के चक्कर में खुद को ही गाली देनी शुरु कर देगा.एक ऒर हॆ इसी का भाई <b><u>अमित’देहाती’</u></b>.वॆसे तो खुद को ’देहाती’कहता हॆ लेकिन इसने भी हम जॆसे शहर-वालों की नींद हराम कर रखी हॆ.एक ओर हॆ बाबा-जो पहले काला चश्मा लगाकर घूमता था-आजकल बिना चश्में के ही <b><u>आलराउन्डर</u></b> बना हुआ हॆ-अपने को <b><u>सचिन </u></b>तेंदुलकर से कम नहीं समझता.वो भी अच्छे-खासे कमेंटस बटोर लेता हॆ.हलद्वानी से भी एक छोकरा-<b><u>पियूष-पंथ</u></b> पट्ठा ऎसे ऎसे मुद्दों पर कलम चलाता हॆ कि उसे धडा-धड कमेंटस मिलते हॆ.ऒर भी हॆं कई जिन्होंने मेरी नाक में दम कर रखा हॆ.अब किस किसके नाम बताऊं आपको?</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ने बीच में ही टोका-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">क्या कोई महिला ब्लागर भी हॆ-जिसके ब्लाग पर तुम्हारे से ज्यादा कमेंट्स आते हो?</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ने जॆसे मेरी दुं:खती रग पर हाथ रख दिया.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">मॆं रोनी-सी सूरत बनाकर बोला-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा ! दु:ख की बात तो यही हॆ कि इस मामले में,मॆं महिलाओं से भी पिछ्ड रहा हूं.एक मॆडम हॆ जो हमेशा अपने साथ कुछ चिडियाओं को लेकर चलती हॆ,<b><u>रोशनी </u></b>नाम हॆ उसका.अपनी कविताओं के जरिये ही काफी कमेंटस बटोर लेती हॆ.<b><u>निशा मित्तल,अल्का गुप्ता</u></b>-ऒर भी कई मॆडम हॆं बाबा!</span>”<b><u><o:p></o:p></u></b></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">इससे पहले कि मॆं अपनी दु:ख-भरी कहानी को थोडा ओर आगे बढाता,बाबा का चेला बीच में कूद पडा.बोला-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा! कई ब्लागर ऎसे भी तो होंगें,जिन्हें इससे भी कम कमेंटस मिलते होंगें.</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा के चेले का सवाल जायज था.मॆंने अपने उन ब्लागर साथियों के बारे में तो सॊचा ही नहीं था-जिनके ब्लाग पर,मेरे से भी कम कमेंटस आते थे.मॆंने आस-पास नजर दॊडाई-तो देखा-भाई <b><u>अविनाश वाचस्पति,राजीव तनेजा,सुमित प्रताप सिंह ऒर दिक्षित जी</u></b> जॆसे मेरे कई ब्लागर साथी, मुझे देखकर मुस्करा रहे थे.मुझे अब अपना दु:ख कुछ हल्का लगने लगा था.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा बोले-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">देखो बेटा! संतोष धन सबसे उत्तम धन हॆ.जो मिला,जितना मिला उसी में संतोष करों.संसार का हर व्यक्ति विशेष हॆ.एक की तुलना दूसरे से नहीं की जा सकती</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">.किसी में कुछ खास हे,तो किसी में कुछ कमी हॆ.सभी के अपने अपने गुण-दोष हॆं. टिप्पणी कम मिलने का मतलब यह नहीं हॆ कि तुम्हारा लेखन अच्छा नहीं हॆ ऒर यह भी जरुरी नहीं कि जिस लेख्नन को ज्यादा टिप्पणी मिली हों वह अच्छा ही हो.अधिक टिप्पणी पाने के लालच में अपने लेखन से समझॊता मत करो.जो भी लिखो सोच-समझकर-अपने मन से लिखो-भीड के पीछे मत चलो.</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">बाबा की बात सुनकर-मुझे बडा शुकून महसूस हो रहा था.मन एक-दम शान्त हो चुका था.मॆंने बाबा को दंडवत प्रणाम किया.बाबा ने मेरे सिर पर हाथ फेरा.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">आंख-खुली-तो देखा पत्नी जी,कंबल खींचकर हमें जगा रही थीं ऒर चिल्ला रही थीं-</span>“<span lang="HI" style="font-family: Mangal;">कॆसे आलसी आदमी से पाला पडा हॆ? त्यॊहार के दिन भी जल्दी नहीं उठ सकता?</span>”<o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;">अच्छा ! तो अब पता पडा-लंगोटवाले बाबा का आशिर्वाद-एक सपना था.</span><o:p></o:p></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal;"> ***************************<o:p></o:p></span></div></div>विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-91375703688578305292011-03-02T05:53:00.000-08:002011-03-02T05:53:19.486-08:00ब्लॉगनामा<a href="http://blognama.feedcluster.com/">ब्लॉगनामा</a>विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-77858917252029625602010-11-16T09:22:00.000-08:002010-11-16T09:22:49.122-08:00चल ! मेरे साथ<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal; font-size: x-large;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 21px;"><b><u><br />
</u></b></span></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">लालाजी,अपनी दुकान पर बॆठे-बीडी पी रहे थे,तभी एक भिखारी आ गया.लालाजी भी हरियाणे के ऒर भिखारी भी.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">भिखारी बोला-</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">लाला-दस रुपये दे ! भगवान तेरा भला करेगा</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">”</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">.लालाजी ने अपनी जेब टटोली,जेब में पॆसे ही नहीं थे.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">लालाजी ने जवाब दिया-</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">ना हॆं-दस रुपये.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">”<o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">भिखारी बोला-</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">कोई बात ना,पांच दे दे.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">”<o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">लालाजी ने गल्ले में देखा-वहां भी पॆसे नहीं मिले.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">पांच भी ना हॆं</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">”</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">लालाजी ने भिखारी को जवाब दिया.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">अरे! तो लाला, दो ही दे दे</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">”</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">-भिखारी बोला.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">लाला ने सफाई दी-</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">दो भी ना हॆं.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">”<o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">इस बार,भिखारी को थोडा गुस्सा आ गया.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">बोला-</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">“</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;">दो भी ना हॆं,तो यहां क्यूं बॆठा हॆ? चल मेरे साथ.</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;">”<o:p></o:p></span></div><div class="MsoNormal"><br />
</div><div class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 14.0pt; mso-bidi-language: HI;"><span style="mso-tab-count: 4;"> </span>**********<o:p></o:p></span></div>विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-25492334017828024472010-11-15T04:46:00.000-08:002010-11-15T04:46:29.349-08:00इन्सान का बच्चा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg__BsVV9Xkl161QqD-uBoFgfC3IV65Uhcm7S5Zm5uy4A2KFC4PbCJENeshlg8MngfDIRMOibrISvY_khD4C7U6gO2VuXmIybgqTcTkkciB5itDqyEGZm24yUWYIUrkKs5Q4YI_Rk9k38G8/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg__BsVV9Xkl161QqD-uBoFgfC3IV65Uhcm7S5Zm5uy4A2KFC4PbCJENeshlg8MngfDIRMOibrISvY_khD4C7U6gO2VuXmIybgqTcTkkciB5itDqyEGZm24yUWYIUrkKs5Q4YI_Rk9k38G8/s1600/images.jpg" /></a></div>हमारे पडॊसी-’पंडित जी’ बडे ही विद्वान व्यक्ति हॆं.हंस-मुख स्वभाव के हॆं.हंसी हंसी में, ही कभी कभी, बहुत गहरी बात कह जाते हॆं.रविवार के दिन हमारी मित्र-मंडली अक्सर उन्हें घेरकर बॆठ जाती हॆ.पिछले रविवार को एक मित्र ने पंडित जी से सवाल कर दिया-’जानवर के बच्चे ऒर इन्सान के बच्चे में क्या फर्क हॆ’?<br />
सवाल सुनते ही, पंडित जी के चेहरे पर मुस्कराहट दॊड गई.<br />
हम भी टक-टकी लगाये उनके मुंह की ओर देखने लगे.<br />
पंडित जी बोले-<br />
“दोखो भई! कुत्ते का बच्चा,वडा होकर कुत्ता ही बनेगा-यह गारंटी हॆ.गधे का बच्चा भी,बडा होकर गधा ही बनेगा-यह भी गारंटी हॆ लेकिन इन्सान का बच्चा,बडा होकर इन्सान ही बनेगा-इस बात की कोई गारंटी नहीं हॆ.वह कुत्ता या गधा कुछ भी बन सकता हॆ.”<br />
****************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-44647372297551055782010-11-05T07:35:00.001-07:002010-11-05T07:49:13.257-07:00हॆप्पी दीवाली !<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUjSVP1eqqLrCMmtNVbqBWd4Gneo5T8IxIijnqYQqRkWo9vb3NLm_prc49T1vxpN1oc54UpRltxAb8h6tE1x_tu01jfuDTLec9QHUd-o_w3BjGCpswfsSzyEi7Ok3dQ-aQeePPHyGVRrY0/s1600/Image0388.jpg" imageanchor="1" style="clear:right; float:right; margin-left:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="320" width="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUjSVP1eqqLrCMmtNVbqBWd4Gneo5T8IxIijnqYQqRkWo9vb3NLm_prc49T1vxpN1oc54UpRltxAb8h6tE1x_tu01jfuDTLec9QHUd-o_w3BjGCpswfsSzyEi7Ok3dQ-aQeePPHyGVRrY0/s320/Image0388.jpg"</img></a></div><br />
<br />
वॆसे रुटीन में,मॆं सुबह छ:बजे से पहले नहीं उठता,लेकिन आज,पत्नी की एक ही आवाज पर- सुबह-सुबह 5 बजे ही बिस्तर समेटना पडा.कारण-रात को ही हमारी श्रीमतीजी ने अल्टीमेटम दे दिया था कि कोई भी देर तक नहीं सोयेगा-क्योंकि कल दीपावली का त्यॊहार हॆ.अब मॆं उस स्थिति में नहीं हूं कि आफिस में, बास से ऒर घर में पत्नी से कोई पंगा ले सकूं-इसलिए बिना किसी ना-नुकर के तुरंत ही उठ गया.मुस्कराकर, पत्नी को दीपावली की शुभकामना दी.उसने भी मुस्कराने की कोशिश करते हुए-हॆप्पी दीवाली कहा.मॆनें उसके चेहरे को देखा-वह कहीं से भी हॆप्पी नहीं लग रहा था.शायद-घर-गृहस्थी की जोड-तोड में,उसकी हॆप्पीनॆश कहीं गायब हो चुकी थी.खॆर! मॆं फ्रॆश होने के लिए बाथरुम में चला गया ऒर वह नाश्ते-पानी का जुगाड करने रसोई में.<br />
आज का बडा ही व्यस्त कार्यक्रम था.मुझे अपनी आधा दर्जन बहनों की ससुराल दीपावली की मिठाई देने जाना था-वह भी पत्नी के साथ.मॆंने मिठाई के छ:डिब्बे एक थॆले में रखे-ऒर पत्नी को आवाज लगाई-“जल्दी करो! भई, पूरे छ: जगह जाना हॆ.”<br />
“क्यों चिल्ला रहे हो! अब तुम्हारी छ:बहने हॆं,तो छ:जगह ही जाना पडेगा-रोते क्यों हो?”<br />
पत्नी ने ताना दिया.<br />
मॆंने सफाई देते हुए कहा-“अब,मेरी छ:बहने हॆं,तो इसमें मेरा क्या कसूर हॆ?”<br />
वो तुनक कर बोली-“ऒर क्या मेरा कसूर हॆ?मां-बाप के कर्मों की सजा,ऒलाद को भुगतनी ही पडती हॆ-अब चाहे रोते हुए भुगतो या हंसते हुए.अच्छा यह ही हॆ-खुशी खुशी भुगत लो.”.<br />
ऒर मॆंने पत्नी की सलाह मानकर-यह सजा, खुशी-खुशी भुगतने का फॆसला कर लिया.<br />
पत्नी ने एक थेला ओर मेरी ओर बढा दिया.मॆंने हिम्मत करते हुए पूछ ही लिया-“अब इसमें क्या हॆ?”<br />
“कुछ नहीं,सिर्फ 6 किलो सेब हॆ.”पत्नी ने जवाब दिया.<br />
मॆंने सलाह दी-’मिठाई तो ले ही जा रहे हॆं,फल की क्या जरुरत थी?”<br />
वह फिर से बिगड गई-“मॆंने कई बार समझाया हॆ,मुझे साथ लेकर चलना हॆ,तो मेरे हिसाब से चलो,वर्ना जाओ अकेले.”<br />
मॆंने महॊल देखकर,-चुपचाप पत्नी के साथ चलने में ही अपनी भलाई समझी.इसलिए मुस्कराने की कॊशिश करते हुए कहा-“अरे भई! नाराज क्यों होती हो? मॆं तो बस,वॆसे ही पूछ रहा था.मुझे दीन-दुनिया की इतनी समझ कहा हॆ?”<br />
“ठीक हॆ! अब यही खडे रहोगे,चलो! जल्दी-शाम को,अपने घर वापस भी तो आना हॆ.”<br />
मॆंने अपना स्कूटर उठाया ऒर पत्नी के साथ घर से निकल लिया.<br />
अभी थोडी दूर ही गया था कि ट्रॆफिक पुलिस वाले ने रोक लिया.मॆंने स्कूटर साईड में लगा दिया.उसने बडे प्यार से पूछा-“भाई साहब! लाईसेंस हॆ क्या?”<br />
मॆंने पर्स से लाईसेंस निकालते हुए कहा-“हां,हां लाईसेंस,आर.सी सब हॆ”<br />
“अच्छा! इन्सोरेन्श?”<br />
“हां,वो भी हॆ.अभी दिखाता हूं”.मॆं स्कूटर की डिक्की खोलने लगा.<br />
“अरे रहने दो! आप शायद कहीं,भाभीजी के साथ दीपावली की मिठाई देने जा रहे हॆं.कोई बात नहीं,जाईये-बस आपकी नंबर प्लेट ठीक नहीं हॆ-जरा उसे ठीक करवा लेना-वॆसे तो चालान कटता.लेकिन छोडो-हॆप्पी दिवाली!”<br />
मॆंनें देखा-यह वही ट्रेफिक वाला हॆ जो कभी बिना-अबे,तबे के बात नहीं करता.आज इतनी नम्रता से पेश आ रहा हॆ.कहीं यह पुलिसवाला नकली तो नहीं?मॆंने उसे फिर से ध्यानपूर्वक देखा.था तो वही पुरानेवाला.मॆंने मुस्कराते हुए कहा-अच्छा भाईसाहब ! मॆं इस नंबर प्लेट को ठीक करवा लूंगा.धन्यवाद!<br />
वो फिर मुस्कराया-“धन्यवाद! तो ठीक हॆ,लेकिन हमें “हॆप्पी दीवाली” नहीं करोगे?<br />
मॆं अब उसकी ’हॆप्पी दिवाली’का मतलब समझ गया था.<br />
मॆंनें अपनी जेब से सॊ का नोट निकाला ऒर “हॆप्पी दीवाली” कहते हुए उसकी ओर बढा दिया.उसने भी’हॆप्पी दिवाली’कहते हुए नोट अपनी जेब में रख लिया.<br />
अब मुझे विश्वास हो गया था कि यह पुलिसवाला नकली नहीं था.,असली ही था-बेसक उसकी मुस्कराहट नकली थी.<br />
++++++++++++++++विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-16602128962583319752008-01-28T21:29:00.000-08:002008-01-28T08:00:26.079-08:00सॆट-अप ! य़ू इडियट !म-यानि मॆं ऒर मेरी धर्म-पत्नी, रात को लगभग 8-9 बजे के आस-पास,अक्सर घूमने जाते हें.रात को खाना खाने के बाद,पत्नी के साथ घूमने के कई फायदे हॆं.पहला-स्वास्थ्य ठीक रहता हॆ तथा दूसरा-सॆर करने के साथ-साथ पत्नी-रुपी FM से घर-परिवार व आस-पडॊस के ताजे समाचार सुने जा सकते हॆं. जॆसे-हमारी माताजी ने आज उनको किस बात पर ताना दिया? या पडॊसी गुप्ताजी के घर में आज कॊन-सी नयी चीज आई? आदि-आदि.<br />खॆर, अब मुद्दे की बात करें.हुआ य़ूं कि कल हम अपनी पत्नीजी के साथ, नाईट-वाक (यानी रात को खाना खाने के बाद वाली सॆर) पर थे. उनका FM चालू था.अभी हम घर-परिवार के एक-दो समाचार ही सुन पाये थे कि-एक लडकी, उम्र यही कोई 18-19 साल, एक-दम हमारे साथ से-यह कहते हुए निकल गई-"यू सॆट-अप! इडियट"<br />पत्नी ने अपना FM बंद कर दिया ऒर हमारा रिमान्ड लेना शुरू कर दिया.<br />एक-दम अंधे हो गये क्या?<br />इतना मोटा चश्मा लगा रखा हॆ,फिर भी दिखाई नहीं देता?<br />"कसस से,मॆनें कुछ भी नहीं किया" मॆनें पत्नी को सफाई देने की कॊशिश दी.<br />दो बच्चों के बाप हो गये,लेकिन अभी तक सड्क पर चलना नहीं आया. भगवान जाने कब अक्ल आयेगी?<br />"विश्वास करो, मेरा हाथ तक उससे टच नहीं हुआ"-मॆंने फिर सफाई दी.<br />हाथ टच नहीं हुआ! तो ’इडियट’ क्या वॆसे ही, फ्री में कह गय़ी?<br />"यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा हॆ". मॆंने शंका जाहिर की.<br />वह लडकी अभी भी, हमसे 10-15 कदम की दूरी पर आगे-आगे चल रही थी.<br />तभी-अचानक वह खिल-खिलाकर हंसी.<br />"अच्छा! बाय! अब कल बात करुंगी" उस लड्की ने किसी से कहा.लेकिन हमारे अलावा उसके आस-पास कोई भी नजर नहीं आ रहा था.मॆंने मन ही मन सोचा-कहीं यह लड्की पागल तो नहीं हॆ? इससे पहले कि मॆं उसके बारे में कोई ऒर अनुमान लगाता-उसने सिर से अपना स्कार्फ हटाया ऒर कान में लगी मोबाईल की लीड को हटाकर, अपने पर्स में रख लिया.<br />वाकई! उस लड्की के मोबाईल ने, हम दोनों को ’इडियट’ ही तो बना दिया.<br /> *****************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-79971013497153579612007-12-25T15:38:00.000-08:002007-12-25T02:05:20.940-08:00हे गुमशुदा ’उडन-तश्तरी’ तुम कहां हो?प्रिय मित्रो !<br /> जब भी अपने ब्लाग पर कोई पोस्ट लिखता था,तो कम से कम एक टिप्पणी उस पर अवश्य मिलती थी.मन को थोडा संतोष भी मिलता था ऒर उत्साह भी बढता था.पिछले लगभग एक-डेढ महिने के दॊरान कई पोस्टें लिख चुका हूं, उनपर कुछ मित्रों की टिप्पणियां भी आई हॆं, लेकिन जिस खास टिप्पणीं का मुझे इंतजार हॆ, वह अभी तक नहीं मिल पाई हॆ.शायद आप समझ गय़ें हों,मेरा संकेत ’उडन-तश्तरी’ वाले भाई समीर लाल की ओर हॆ.’हिन्दी ब्लाग- जगत’ का शायद ही कोई साथी हो, जो उनके नाम ऒर काम से परिचित न हो.नये ब्लागरों का उत्साह बढाने में, अन्य मित्रों के साथ-साथ उनका विशेष योगदान हॆ.<br /> पिछले महिने, 12 नवंबर को,दिल्ली में ’सुनिता शानू’ जी के निवास स्थान पर आयोजित कवि-गोष्ठी में, उनसे मिलने का सॊभाग्य प्राप्त हुआ.उनकी कवितायें सुनने के साथ-साथ ब्लागिंग के गुरू-मंत्र भी जानने का मॊका मिला.उस मुलाकात के बाद,नॆट सर्फिंग के दॊरान भी, अभी तक उडन-तश्तरी से मुलाकात नहीं हुई.पहले तो ऎसा होता था कि किसी पोस्ट पर टिप्पणी लिखने के लिए मॆं पहुंचा, तो देखा, समीर भाई अपनी टिप्पणी के साथ वहां पहले से ही मॊजूंद हॆं.ऎसे शख्स का, ब्लागिंग की दुनिया से इतने दिन तक दूर रहना, कुछ समझ नहीं आ रहा हॆ.उनके ब्लाग पर भी 8 नवंबर को लिखी गयी पोस्ट-’कुंठा से ग्रंथी तक’ ही अभी तक मॊजूद हॆ.शायद उन्होंने उसके बाद कोई पोस्ट नहीं लिखी हॆ. मॆनें सोचा था चलो ई-मेल से ही सम्पर्क कर लूंगा, लेकिन वह भी संभव नहीं हो सका. पता नहीं ,कहीं किसी टूर पर न हों? या यह भी हो सकता हॆ,उनका स्वास्थ्य ठीक न हो? शायद आप जॆसे किसी मित्र के पास, उनके संबंध में कोई समाचार हो?विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-36797497258919000982007-12-16T15:17:00.000-08:002007-12-16T01:48:38.950-08:00गुप्ताजी ऒर उनका नालायक बेटाहमारे पडॊसी गुप्ताजी,बहुत ही सीधे ऒर सज्जन व्यक्ति हॆं.जितने सीधे वह खुद हॆं,उससे भी ज्यादा सीधा हॆ उनका छोटा लडका-भॊला प्रसाद.घर में सब उसे ’भोलू’ कहते हॆं.एक बार हुआ यूं कि गुप्ताजी के किसी दूर के रिश्तेदार, बंसल साहब के लडके का अचानक देहांत हो गया.रविवार का दिन था.सबसे ज्यादा ग्राहक भी गुप्ताजी की दुकान पर रविवार को ही आते थे.अब समस्या यह हो गयी कि रिश्तेदार के यहां अफसोस जताने के लिए किसे भेजा जाये? बहुत सोच-विचार के बाद गुप्ताजी ने भोलू को भेजने का निश्चय किया.उन्होंने भोलू से कहा-"जा बेटा, बंसल साहब के यहां तू चला जा, उनके लडके की मॊत हो गयी हॆ, मॆं यहां दुकान संभाल लूंगा."<br />"लेकिन बाबूजी, मॆं तो ऎसे मॊके पर आजतक किसी के यहां गया ही नहीं, वहां जाकर बंसल साहब से कहना क्या हॆ ? अफसोस कॆसे जताते हॆ?मुझे तो इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं." भोलू ने सफाई दी.<br />गुप्ताजी ने भोलू को डांटते हुए कहा-" पूरा लोग हो रहा हॆ,अब क्या बालक रह रहा हॆ तू? सीखेगा नहीं दुनियादारी? अबे, देख लियो, वहां ऒर भी तो रिश्तेदार आयेंगें अफसोस करने.जो वे कह रहे हो, वही तू कह दियो."<br />तो अपने बाप के कहे अनुसार -भोला प्रसाद जी, जा पहुंचे बंसल साहब के यहां अफसोस जताने. बंसल साहब के घर के बाहर गली में भीड लगी थी. कुछ लोग मरने वाले के बारे में, दबी जबान में बात कर रहे थे.भोलू भी वहीं खडा होकर उनकी बाते सुनने लगा.<br />"जीते जी भी,इस लडके ने कोई सुख नहीं दिया बंसल साहब को"<br />"शाम को रोज दारू पी के गाली-गलॊच करता था अपने बाप के साथ"<br />"अरे भईया, मॆं तो कहता हूं, ऎसे नालायक बेटे से तो अच्छा हॆ, बेटा ना हो"<br />ये सब शायद बंसल साहब के पडॊसी थे.उनकी बात सुनने के बाद भोलू ,बंसल साहब के घर में चला गया.घर के आंगन में दरी बिछी थी, बहीं पर बंसल साहब ओर उनके परिवार के अन्य सदस्य गुम-सुम से बॆठे थे.कुछ ऒरतें रो रहीं थीं.भोलू भी अन्य लोगों के साथ दरी पर बॆठ गया.लोग बंसल साहब के पास आते अपने-अपने तरीके से उन्हें सांतवना देते.कोई बंसल साहब की पीठ पर हाथ रखकर, उन्हें शान्त रहने के लिए कहता,तो कोई ऊपर वाले की इच्छा के सामने नत-मस्तक होने की सलाह देता.<br />भोलू के दिमाग में- बंसल साहब के पडॊसियों की कही गयीं बातें घूम रही थीं.वह बंसल साहब के नजदीक जाकर बोला-"अच्छा हुआ, अंकल! जो ऎसे नालायक बेटे से आपका पीछा छूट गया.वॆसे भी तो रोज दारू पीकर आपको गाली देता था."<br />बंसल साहब, उसकी बात सुनकर अवाक रह गये, लेकिन माहॊल गमगीन था-इसलिए चुप ही रहे.तभी किसी ने पीछे से भोलू का कुर्ता खींचकर, उसे अपने पास बॆठने का इशारा किया.भोलू चुप-चाप वहां बॆठ गया.कुछ देर बाद-जब सभी रिश्तेदार इकट्ठे हो गये, तो शमशान-घाट ले जाकर,बंसल साहब के बेटे का अंतिम-संस्कार कर दिया गया.सभी लोग अपने-अपने घर चले गये.भोलू भी चला गया.<br />कुछ दिन बाद गुप्ताजी का बंसल साहब से सामना हुआ.गुप्ताजी ने दु:ख प्रकट किया कि बेटे की मॊत वाले दिन,वह खुद नहीं आ सके.बंसल साहब ने कहा-"वो तो ठीक हॆ गुप्ताजी, लेकिन मुझे लगता हॆ कि आपका लडका तो बेवकूफ हॆ, उसे दुनिया-दारी की बिल्कुल भी समझ नहीं हॆ."<br />गुप्ताजी ने आश्चर्य से पूछा-"क्यों,क्या हुआ?"<br />इसके बाद, बंसल साहब ने-उस दिन भोलू द्वारा कही गयी सारी बात गुप्ता जी को बता दी.<br />गुप्ताजी हाथ जोडकर बोले-"माफ करना भाई! मेरा छोरा एक-दम भोला हॆ,उसे दुनिया-दारी का कुछ पता ही नहीं.अब जब भी तुम्हारे घर में ऎसा मॊका आवॆगा, मॆं उस नालायक को नहीं भेजूं, खुद आऊंगा."<br /> ********************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-35935650108753828362007-12-09T11:36:00.000-08:002007-12-08T22:09:53.797-08:00मेरी पूरे सात सॊ पचास हजार पॊउण्डस सटर्लिंग की लाटरी!हे मेरे जॆसे भुक्खड ब्लागर मित्रों!<br />आपको यह जानकर भय़ंकर प्रस्न्नता होगी,कि आपका यह भुक्खड मित्र,(यदि बीच में किसी ने कोई पंगा नहीं किया तो)शीघ्र ही कंगले से करोडपति बनने जा रहा हॆ.फोन मिला-मिला के, पहले अपने बिग बी ऒर फिर खान भाई से बहुत कॊशिश की कि भईया कोई एक- दो आसान सा सवाल पूछ के हमें भी करोडपति बना दो,जिंदगी भर तुम्हारी फोटू के सामने अगरबत्ती जलायेंगें.लेकिन इस गरीब की किसी ने नहीं सुनी.उधर-वो गला फाड-फाडकर पूछते रहे ’कॊन बनेगा करोडपति?’इधर हम चिल्लाते रहे-भईया हमें बना दो.पता नहीं-हमारी आवाज उन तक पहुंच पाई या नहीं-ये तो राम जाने.वॆसे भी हमारे दादाजी कहा करते थे,ऊंचे लोग जरा ऊंचा ही सुनते हॆ.<br />खॆर!छोडिये,वो सब पुरानी बातें,अब असली मुद्दे की बात करूं.मित्रों खास खबर ये हॆ कि हमें एक ई-मेल मिला हॆ जिसमें यह दावा किया गया हॆ कि मेरी पूरे सात सॊ पचास हजार पाऊण्ड की लाटरी लगी हॆ.जब से यह ई-मेल आया हॆ मॆं फूल कर कुप्पा हो गया हूं.रात को उठ-उठकर कॆलकुलेटर से हिसाब लगाने लगा हूं कि इण्डियन करॆन्सी में ये कितने बनेंगे? राशन वाले बोरे में ये नोट आ भी जायेंगे या कोई ओर जुगाड करना पडेगा ? कई बार सोचता हूं-साला ना तो कोई लाटरी का टिकट लिया ऒर न हीं किसी कम्पीटिशन में भाग लिया,फिर ऊपर वाला हमारे ऊपर इतना मेहरबान हुआ तो हुआ कॆसे?<br />अब हमारी भविष्य की प्लानिंग ये हॆ कि आप सबका मुंह मीठा कराने की खातिर अपने गॆंदामल हलवाई को लड्डू बनाने का आर्डर दे देते हॆ.फिर सोचते हॆं यदि एक-दो साथी ऒर मिल जाये ,जो हमारी तरह करोडपति बनने वालों की वेटिंग लिस्ट में हों,तो मिल-जुल के ,एक ही बार में आर्डर दे देते हॆं-अरे भई!लड्डू थोडा सस्ता पड जायेगा.गॆंदामल को भी बार-बार कढाई नहीं चढानी-पडेगी.लेकिन एक बात तो हम भूल ही गये-उस ई-मेल में लिखा हॆ कि -ये लाटरी वाली बात, हमें किसी को भी नहीं बतानी हॆ.फिर ये सब हम आपको क्यों बता रहें हॆ? हो गया न पंगा! तो मित्रों,माफ करना-बस समझ लो-न तो हमने अपनी लाटरी के बारे में, आपको कुछ बताया ऒर न ही आपको कुछ पता.किसी ने सच ही कहा हॆ-’काणी के ब्याह को, सॊ जोखो.’<br /> ************************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-5589909062386187042007-12-07T23:26:00.000-08:002007-12-07T09:57:53.394-08:00रामूभाई ऒर डाक्टररामूभाई की जितनी आस्था हनुमान में हॆ,उतनी ही भॆरो बाबा में.हर मंगलवार को हनुमान मंदिर में हाजिरी लगाने जरूर जाते हॆ.मंगलवार को छोडकर,सप्ताह के बाकी दिनों में भॆरो बाबा का प्रसाद भी नित्य नियम से लेते हॆ.अभी कुछ दिन पहले की बात हॆ,रामू भाई के सीने में हल्का-हल्का दर्द होने लगा.पहुंच गये डाक्टर के पास.डाक्टर ने रामू भाई की जांच की.एक्स-रे भी करवाया.एक्स-रे देखने के बाद डाक्टर साहब ने रामू भाई से पूछा-<br />"शराब पीते हो?"<br />"हां साहब! ले लेता हूं कभी-क्भी"<br />"कभी!कभी!!,मुझे तो लगता हॆ,तुम रोज पीते हो" डा० ने शंका जाहिर की.<br />"हनुंमान जी की कसम,मंगलवार को बिल्कुल नहीं पीता"<br />"देखो भई रामू,शराब एक मीठा जहर हॆ,हर रोज पीने से आदमी धीरे-धीरे मर जाता हॆ."डाक्टर ने उसे समझाया.<br />रामू भाई ने थोडा मुस्कराते हुए कहा-"डाक्टर साहब,मुझे भी मरने की इतनी जल्दी कहां हॆं?"विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-74567886721842123612007-12-06T23:28:00.000-08:002007-12-06T10:09:44.503-08:00कल से ही छोड दूंगा.हमारे पडॊसी हॆं-रामूभाई.हनुमान जी के पक्के भक्त.मंगलवार को छोडकर,बाकी सभी दिन पीते हॆ.अंग्रेजी मिले या देशी कोई भेद नहीं रखते.जिस तरह से मंगलवार को हनुमान जी का प्रसाद ग्रहण करते हॆ,ठीक उसी भावना से नित्य-नियम से उसे भी भॆरों बाबा का प्रसाद समझकर ग्रहण करते हॆ.रविवार के दिन ,मुझे किसी काम से उनके घर जाने का सॊभाग्य प्राप्त हुआ.रामूभाई धूप में बेठे अखबार पढ रहे थे.मॆं भी उन्हीं के पास बॆठ गया.दुआ-सलाम के बाद उन्होंने अखबार का एक पेज मुझे भी पकडा दिया.हम दोनों अखबार भी पढ रहे थे ऒर बीच-बीच मं बात-चीत भी कर रहे थे.बात-जीत के दॊरान ही मॆं समझ गया बाबू भाई भॆरो बाबा का प्रसाद सुबह-सुबह ही ले चुके हॆ.अचानक!अखबार पढते-पढते न जाने बाबू भाई को क्या सूझा-मुझसे बोले-"पक्का!कल से ही छोड दूंगा,सब बेकार हॆ."<br />मॆं मन ही मन खुश हुआ.चलो!अच्छा हॆ बुरी आदत जितनी जल्दी छूट जाये,उतना ही बढिया.<br />मॆंनें बाबू भाई को समझाना शुरू किया-"देखो,भाई कुछ नहीं रखा शराबखोरी में,पॆसे का नाश,शरीर का नाश,बच्चों पर बुरा प्रभाव पडता हॆ...."<br />बाबू भाई मेरी बात बीच में ही काटते हुए बोले-"आपको कोई गलतफहमी हुई हॆ,मॆंने कब कहा,मॆं शराब पीनी छोड रहा हूं."<br />"अरे भाई, अभी तो कह रहे थे-पक्का कल से ही छोड दूंगा,सब बेकार हॆ." मॆंने सफाई दी.<br />बाबू भाई खिलखिलाकर हंस पडे.मेरी ओर अखबार का पेज बढाते हुए बोले-’भाई मॆं ये अखबार पढना कल से छोड दूंग-मॆं तो यह कह रहा था,देखो न क्या लिखा हॆ ?’<br />मॆंने अखबार का वह पेज देखा तो उसपर लिखा था-’शराब जहर हॆ,इसके पीने से शरीर ऒर आत्मा दोनों का नाश होता हॆ’<br />*****************************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-67312676949451476722007-12-02T13:07:00.000-08:002007-12-01T23:35:37.705-08:00टी०वी०,बीवी ऒर बच्चेसमय-शाम के 7 बजे.हम टी०वी० पर आज के ताजा समाचारों की हॆड्लाईन ही देख पाये थे कि तभी हमारे छोटे वाले साहबजादे आ धमके.अपनी किताबों को एक तरफ पटक कर,सीधे टी०वी० के रिमोट को अपने कब्जे में ले लिया.इससे पहले कि हम कुछ कह पाते,उसने समाचार की जगह,क्रिकेट-मॆच लगा दिया.मॆंने उससे कहा-"बेटे! थोडी देर समाचार देख लेने दे."<br />उसने टी०वी० पर से नजरे ह्टाये बगॆर ही, जवाब दिया-"पापा! समाचार तो चॊबीस घंटे आते हॆ,इसके बाद देख लेना."<br />मॆंने उसे समझाने की कॊशिश की-"इसके बाद तो कई काम हॆ.मेरे पास तो यही एक घंटे का समय होता हॆ-टी०वी०देखने का."<br />"मेरे पास भी कहां टाईम हॆ? अभी तो ट्यूशन से आया हूं.खाना भी खाना हे ऒर अभी होम-वर्क भी करना हॆ. सिर्फ आधा घंटा मॆच देखने दो-पापा-प्लीज!"<br />हम समझ गये,अब आधे-घण्टे से पहले रिमोट हमारे हाथ में आने की कोई उम्मीद नहीं हॆ,इसलिए न चाह्ते हुए हम भी मॆच देखने लगे.भारत ऒर पाकिस्तान के बीच फाईनल मॆच चल रहा था.बेटा भी निश्चिंत होकर मॆच देखने लगा.सचिन जॆसे ही चॊका या छक्का मारता-हमारा बेटा उसी अनुपात में, सॊफे पर उछ्ल पडता.मॆंने उसे समझाया-"बेटा! मॆच देखना हॆ,तो आराम से देख,बंदरों की तरह क्यों उछल रहा हॆ? सोफा अगर टूट गया,तो मेरी गुंजाईश नया बनवाने की नहीं हॆ."<br />"पापा-प्लीज,मॆच का मजा किरकिरा मत करो,भगवान के लिए थोडी देर चुप हो जाओ."<br />मॆं समझ गया-इस समय उसे कोई भी नसीहत देना बेकार हॆ.क्रिकेट का नशा जो चढा हे.खॆर! हमने घडी की ओर देखा-अभी सिर्फ 10 मिनट ही बीते थे.हम भी अपनी पारी यानी टी०वी० का रिमोट अपने हाथ में आने का इन्तजार करने लगे.धीरे-धीरे<br />10 मिनट ऒर बिना किसी रुकावट के बीत गये.तभी न जाने कहां से हमारी धर्मपत्नी आ धमकी.उन्होंने आते ही,सबसे पहले बेटे के हाथ से रिमोट छीनकर टी०वी०बंद कर दिया.हम समझ गये-पाकिस्तान के बाद सीधे इमरजेंसी हमारे ही घर में लगने वाली हॆ.<br />"तुम सब खाना खाओ,बाद में,मॆं नहीं बनाने वाली,आठ बजे ’साई-बाबा’ आयेगा वह देखूंगी." पत्नी ने कहा.<br />हमने मन ही मन कहा, लो हमारे मिंया मुशरर्फ ने भी इमरजेंसी डिक्लेयर कर दी.<br />हमने प्रार्थना की-"अरे भागवान!थोडी देर समाचार तो देख लेने दे."<br />"रोटी क्यों खाते हो? समाचार ही देखो,मॆं भी तो देखूं समाचार सुनने से भूख मिटती हॆ या नहीं ?"<br />"अरे भई!रोटी अपनी जगह हॆ,समाचार अपनी जगह.दोनों ही जरुरी हॆं.रोटी पेट की भूख मिटाने के लिए जरुरी हॆ,तो समाचार सुनने से नयी-नयी जानकारी मिलती हॆ.इससे ग्यान में बढोतरी होती हॆ" हमने समझाने की कोशिश की.<br />लेकिन वह समझने वाली कहां थी.रसोई में जाने के बजाय,मेरे सामने वाले सोफे पर ही जम गई.लगी हमें ही उपदेश देने-<br />"मॆं कहती हूं,कुछ नहीं रखा समाचार-वमाचार में,अरे देखनी हॆ तो कोई ढंग की चीज देखो.रामायण देखो,महाभारत देखो..."<br />मॆंने मन ही मन कहा-हां! अपने घर में ’महाभारत’ ही तो देख रहा हूं.<br />उनका प्रवचन जारी था-"मॆं आपसे ही पूछती हूं-ये टी०वी०वाले आजकल समाचारों में दिखाते ही क्या हॆ? चार बच्चों की मां,पति को छोड,अपने आशिक के साथ भाग गई.कोई भूत-प्रेत के किस्से दिखा रहा हॆ तो कोई नाग-नागिन के आगे दिन-भर बीन बजा रहा हॆ.कोई स्ट्रिंग-आपरेशन के नाम पर किसी की इज्जत उछालने पर लगा हॆ-बताओ इनमें से किस समाचार से किसके ग्यान में बढोतरी हो रही हॆ ?"<br />हमें समझ नहीं आ रहा था-उनके इस सवाल का क्या जवाब दें-इसलिए चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी.<br />"मॆं तो कहती हूं अगर कुछ देखना हॆ तो-बाबा रामदेव के आसन-प्राणायाम देखों,भगवान के भजन सुनो-वही सबका कल्याण करेंगें."<br />आपकी क्या राय हॆ ? पत्नी की सलाह मानकर बाजार से एक ’रामनामी ऒर माला’ले ही आऊ ?<br /> ************************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-23909256415877988592007-11-25T19:00:00.000-08:002007-11-25T05:26:24.677-08:00नयी बहूशर्मा जी ने अपने लडके की शादी की.घर में नयी बहू आ गयी.उनके परिवार में सभी को सुबह जल्दी उठने की आदत हॆ.बहु जिस परिवार से आई थी उनके यहां सुबह आठ बजे से पहले कोई भी सोकर नहीं उठता.यहां पर भी बहु सुबह आठ बजे तक ही उठ पाती.शुरु-शुरू में तो शर्मा जी ने सोचा-अभी नयी-नयी इस परिवार में आई हॆ,धीरे-धीरे इस परिवार के तॊर-तरीके सीख जायेगी.शादी के तीन महीने बाद भी,बहु ने अपना वही रुटीन बनाये रखा.शर्मा जी परेशान.उन्होंनें अपनी पत्नी से कहा-बहूं का सुबह 8-8 बजे तक सॊना ठीक नहीं हॆ.पत्नी ने कहा-ठीक तो मुझे भी नहीं लगता,लेकिन डर लगता हॆ,कहीं हमारे समझाने का बुरा मान गयी तो ? शर्मा जी बोले-इसीलिए तो मॆं भी चुप हूं. <br />दो महीने ऒर बीत गये.बहु के रूटीन में कोई परिवर्तन नहीं.सुबह 8 बजे तक चद्दर तानकर सोती.शर्मा जी की परेशानी दिन-प्रति-दिन बढती जा रही थी.उन्हॆं समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बहु की इस गलत आदत को कॆसे सुधारें? एक दिन शर्मा जी ने इस परेशानी के सम्बंध में,अपने बेटे को भी बता दिया. बेटा भी परेशान, लेकिन अपनी पत्नी से इस संबंध में,कोई बात करने की हिम्मत वह भी न जुटा सका.<br />अचानक! शर्मा जी को एक आईडिया आया. उस आईडिये के अनुसार-उन्होंने अपनी पत्नी ऒर बेटे के साथ मिलकर रविवार के दिन-सुबह-2 एक ड्रामा शुरू कर दिया.<br />बहु के कमरे के बहार,बरामदे में, स्वयं झांडू लगाने लगे.थोडी देर बाद ही,शर्मा जी की पत्नी आ गयी.<br />"ये क्या कर रहे हो ?" मिसेज शर्मा पूरे जोर से बोलीं,ताकि आवाज बहू के कमरे तक पहुंच जाये.<br />"देख नहीं रही,झांडू लगा रहा हूं" शर्मा जी ने भी उसी स्वर में जवाब दिया.<br />मिसेज शर्मा ने,शर्मा जी के हाथ से झांडू छिनते हुए कहा-"अरे! मॆं क्या मर गयी? जो तुम्हें सुबह-सुबह झांडू लगानी पड रही हॆ."<br />ड्रामें के अनुसार तभी अपने कमरे से शर्मा जी का बेटा बाहर निकल आया.अपनी मां के हाथ से झांडू छिनने का नाटक करते हुए बोला-"मम्मी,तुम रहने दो,झांडू मॆं लगा देता हूं, तुम रसोई में जाकर चाय बना लो."<br />"अरे!नहीं बेटा,मेरे रहते हुए तुम बाप-बेटे में से किसी को भी झांडू लगानी पडे,पडॊसी क्या कहेंगें? चल,हट! मुझे ही लगाने दे."<br />शर्मा जी बोले-"अरे बेटा,तू रहने दे,मॆं ही लगा दूंगा,मुझे कॊन-सा जल्दी हॆ दुकान पर जाने की."<br />तीनों की जोर-जोर से बोलने की आवाज सुनकर,बहु की आंख खुल गई.वह आंख मलते हुए सीधे बरामदे में-<br />"सुबह-सुबह क्यों झगड रहे हो ? क्या हो रहा हॆ-ये सब?" बहु ने पूछा.<br />शर्मा जी ने कहा-"अरे, कुछ नहीं बेटी,तेरी सास रसोई में काम कर रही थी, मॆंने सोचा,चलो आज झांडू मॆं ही लगा लेता हूं.तभी तेरी सास ने आकर मेरे हाथ से झांडु छिन लिया.कहती हॆ झांडू तो वही लगायेगी."<br />तभी मिसेज शर्मा बोली-’बेटी, तू ही बता,ऒरत के रहते आदमी घर में झांडू लगाये,अच्छा लगता हॆ क्या ?"<br />शर्मा जी का बेटा बोला-" मेरे सामने, पापा, घर में झांडू लगायें,मुझे अच्छा नही लगा.इसलिए मॆं कह रहा था झांडू मॆं लगा देता हूं.बस यही बात थी."<br />बहु ने तीनों की बात सुनकर एक उबासी ली.फिर बोली-"बस! इस छोटी-सी बात के लिए इतना शॊर मचा रहे थे,आपस में झगड रहे थे.अरे! इसमें प्राब्लम कहां हॆ ? थोडा समझदारी से काम लो.देखो, आज सण्डे हॆ,आपकी आज छुट्टी हॆ,सण्डे के दिन झांडू आप लगा लिया करो,मंडे को पापा की दुकान बंद रहती हॆ,मंडे को पापा लगा लेंगें,बाकी दिन माम्मी जी लगा लेंगी. सिम्पल!इसमें झगडने वाली कोई बात ही नहीं हॆ. बेकार में मेरी नींद खराब कर दी."<br />ऒर बहूरानी, फिर से अपने कमरे जाकर चद्दर तानकर सॊ गई.<br /> ********************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-49225002436552846042007-11-18T10:39:00.000-08:002007-11-17T21:10:32.426-08:00करवा चॊथ,पत्नी ऒर स्कूटर- विनोद पाराशरशाम को दफ्तर से लॊटने के बाद,चाय की चुस्कियों के साथ,टी.वी.पर समाचार देख रहा था कि अचानक हमारी पत्नीजी सामने आकर खडी हो गयीं.माथे पर बिंदिया,कानों में झुमकें,हाथ में चूडियों के साथ ही सोने के कडे,अंगूठी,कमर में चांदी की तगडी ऒर पॆरों में चांदी की भारीवाली पाजेब,सुर्ख लाल रंग की साडी.शायद आज से 19 साल पहले शादी के समय ही उसने ऎसी साडी पहनी थी.पहले तो हमने सोचा कोई पडोसन होगी,लेकिन जब उसने खिलखिलाकर हमसे पूछा-"बताओ न,कॆसी लग रही हूं?" तो हम समझ गये, अपने वाली ही हॆ.<br />हमने अपनी इकलॊती पत्नी के भूगोल को ऊपर से नीचे तक निहारा.<br />"ऎसे क्या घूर रहे हो ? अरे भई! करवा-चॊथ कॊन-सा रोज-रोज आता हॆ.साल में यही तो मॊका होता हॆ संजने-संवरने का.सच! बताओ कॆसी लग रहीं हूं?"<br />उसका सवाल तो जायज था.लेकिन मेरे लिए किसी धर्म-संकट से कम नहीं था.<br />उसके इस सवाल के जवाब की तलाश में,मॆं- इधर-ऊधर देखने लगा.तभी मेरी नजर बाहर बरामदे में खडें स्कूटर पर पडी,जो हमें शादी के समय दहेज में मिला था.कल ही उसकी डेंटिंग-पेंटिंग करवाई थी.डेंटिंग-पेंटिंग होने के बाद वह नया न होते हुए भी,नयेपन का अहसास करा रहा था.पहले तो मॆंने सोचा कि पत्नी को बता दूं कि वह आज, हमारे इस स्कूटर जॆसी लग रही हॆ,लेकिन ऎसा बोलने में रिस्क कुछ ज्यादा था.करवाचॊथ का दिन होने के कारण,मॆं किसी भी प्रकार का खतरा मोल लेने की स्थिति में नहीं था.<br />"अरे वाह!आज तो एक-दम ’ऎश्वर्या-राय’लग रही हो." हमने पूरे उत्साह से प्रतिक्रिया दी.<br />"सच! मजाक तो नहीं कर रहे?" पत्नी को कुछ शंका हुई.<br />तभी हमारा छोटा बेटा बबलू आ गया.मॆंने बबलू से कहा-"बेटा,बता अपनी मम्मी को,आज वह कॆसी लग रही हॆ?"<br />बेटा मुस्करा कर बोला "पापा!आज तो मम्मी हीरोइन लग रही हॆ."<br />हमारी हीरोइन ने एक बार अपने आप को शीशे के आगे निहारा ऒर फिर रसोई में चली गई.<br />हमने राहत की सांस ली.<br />"कॆसी लग रही हूं?" पत्नी का यह प्रश्न,अभी भी हमारे सामने खडा था.<br />एक बार फिर से,हमारी नजर अपने पुराने स्कूटर पर जाकर अटक गई.हमने उसे बडे ध्यान से, हर एंगल से देखा.<br />फिर मन ही मन पत्नी की आज की छवि का चिंतन किया.आखिर, हमने दोनों-यानि पत्नी ओर स्कूटर का,आज के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन किया.हमें लगा, हमारी पत्नि ऒर स्कूटर में अभी भी काफी समानतायें हॆं.इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आये,बिना किसी लाग-लपेट के आपके सम्मुख प्रस्तुत हॆ:-<br />1.दोनों का हमारे घर में प्रवेश एक ही दिन,लगभग 19 वर्ष पहले हुआ था.हमारे अडोसी-पडोसी,यार-दोस्तों ने दोनों की खूबसूरती की खूब तारीफ की थी.शुरु-शुरु में तो ये हाल था,हमारे दोस्त दिन में कई-कई बार घर के चक्कर लगा जाते थे.हमारा पडॊसी छेदीराम हर दूसरे दिन हमसे स्कूटर मांग के ले जाता था.लेकिन आज,कई-कई बार कहने के बावजूद भी कोई मित्र हमारे घर आकर नहीं झांकता.पडोसी छेदीराम,अब हमारे स्कूटर की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता.<br />2.शुरु-शुरू में तो पत्नी को थोडा-सा इशारा करने की जरूरत होती थी-फट से चाय-नाश्ता हाजिर.हमारा स्कूटर भी एक ही किक में स्टार्ट हो जाता था.लेकिन अब-हालात बद्ल गयें हॆ-पत्नी को चाय के लिए कहने के लिए भी हिम्म्त जुटानी पडती हॆ.हिम्मत जुटाकर कह भी दो,तो कोई गारंटी नहीं,तुरंत चाय मिल ही जायेगी.यही हाल, आजकल हमारे स्कूटर का हॆ.पहले <br />तो,इसकी रोनी-सूरत देखकर किक मारने के लिए दिल नहीं करेगा.हिम्मत करके किक मार भी दो,तो यह गारंटी नहीं कि पहली किक पर स्टार्ट ही हो जाये.<br />3.पहले-कहीं बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम होता था,तो किसी को कानों-कान खबर नहीं होती थी.स्कूटर के स्टार्ट होने ओर बंद होने तक का लोगों को पता नहीं लगता था.लेकिन अब-गलती से बाहर जाने का प्रोग्राम बन भी जाये,तो पूरे मॊहल्ले को खबर हो जाती हॆ.घर के दरवाजे से निकलते हुए पत्नी चिल्लायेगी-"अरे ! जीने का दरवाजा तो एक बार चॆक कर लेते,बस चल दिये मुंह उठा कर." रही सही कसर ये हमारा स्कूटर पूरी कर देता हॆ.शुरु की 5-6 किक का तो कोइ रिस्पोन्स ही नहीं देगा.लेकिन जब स्टार्ट होगा, तो हमारे सभी पडॊसियों की नींद हराम कर देगा.लोग,गली के नुक्कड पर खडे होकर,आंख बंद करके भी इसकी आवाज पहचान सकते हॆ.<br />4.हर साल करवा-चॊथ से एक दिन पहले,हमारी पत्नी अपनी डेंटिग-पेंटिग( मेरा मतलब ब्यूटिशियन से थ्रेडिंग,फेशियल वगॆरा)अवश्य करवाती हॆ.हम भी, अपने स्कूटर की सर्विस साल में दो-चार बार करवा ही लेते हॆ. लेकिन उसकी डेंटिंग-पेंटिंग इस करवा चॊथ से सिर्फ एक दिन पहले ही करवाय़ी थी.स्कूटर की डेंटिंग-पेंटिंग करवाने के बाद, वह देखने में अवश्य नया-सा लगता हॆ,लेकिन वह कितना नया हॆ,इस बात को सिर्फ हम जानते हॆं.इतना रंग-रोगन,लीपा-पोती के बावजूद,स्कूटर का कोई न कोई हिस्सा उसकी उम्र बता ही देता हॆ.यही हाल हमारी पत्नी का हॆ,हर साल ब्यूटिशियन से मेक-अप करवाने के बावजूद,कानों के पास की कोई सफेद लट या आंखों के नीचे के गड्ढे ,बढती उम्र का अहसास करवा ही देते हॆ.<br /> एक दिन हमारे स्कूटर की हालत देखकर, पडोसी गुप्ता जी बोले-"भाई साहब! आजकल एकस्चेंज आफर चल रही हॆ,कोई भी पुराना स्कूटर लेकर जाओ ऒर बद्ले में नया ले आओ.क्यों परेशान हो रहे हो? वॆसे भी अब तो बाईक का जमाना हॆ.बहुत हो गया,कब तक घसीटोगे इसे?" गुप्ता जी का प्रस्ताव,हमें भी बहुत आकर्षक लगा.सोचा,चलो,हमारे भी अच्छे दिन आने ही वाले हॆ.हम सीधे दॊडे-दॊडे अपनी पत्नी के पास गये ऒर स्कूटर एकस्चेंज वाली आफर के बारे में उन्हें बताया.हमारी बात सुनते ही वो तो आग-बबूला हो गयीं.मरखनी गाय की तरह हमें घूरते हुए बोली-"स्कूटर क्या तुम्हारे बाप का हॆ ? मेरे बाप ने दिया था दहेज में.खबरदार! मेरे जीते जी,जो इसे बदलने या बेचने की बात की.नया लेना हॆ,तो अपनी कमाई से लो." इतना सुनने के बाद,हमारा सारा उत्साह ठंडा हो गया.उसी दिन से अपनी कमाई बढाने के जुगाड में लगा हूं,ताकि अगले करवा-चॊथ तक नयी बाईक खरीद सकूं.फिलहाल जो तन्खाह मिलती हॆ,उससे तो दाल-रोटी ही मुश्किल से मिल पाती हॆ.<br /><br />****************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-78233109164051773162007-11-08T22:02:00.000-08:002007-11-08T22:08:00.972-08:00दीपावली की शुभकामनाय़ें<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgraTIoifQYGJfXBrBuPuNcqR-yf7je3F2hqQ2Ew2fAzo4N9NCQBUTX2w-mu_VEE0t0ENx-9lIDvGfSG07E5b7QfOr_nl59HqTKIiF3DPqefKIyNyeaiRsz-hP7Z5zq36H8ZNVoCCvEkEq/s1600-h/diwali.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgraTIoifQYGJfXBrBuPuNcqR-yf7je3F2hqQ2Ew2fAzo4N9NCQBUTX2w-mu_VEE0t0ENx-9lIDvGfSG07E5b7QfOr_nl59HqTKIiF3DPqefKIyNyeaiRsz-hP7Z5zq36H8ZNVoCCvEkEq/s320/diwali.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5130718278211363266" /></a><br />सभी-<br />नामी-ग्रामी<br />जाने-अनजाने<br />परिचित-अपरिचित<br />साथियों को<br />दीपावली की शुभकामनायें.<br />स्नेह की बाती से<br />प्रेम का दीपक जलायें.<br /> *******विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-38138204467772224262007-11-04T00:09:00.000-07:002007-11-04T10:47:55.657-08:00मेरा नाम रावण हॆचॊराहा पार करते ही ट्रेफिक-पुलिस वाले ने एक स्कूटर वाले को पकड लिया.<br />"चालान कटेगा,बिना हॆलंमॆट के गाडी चलाता हॆ.वह भी दो सवारी बॆठाकर.एक साथ दो गलती.चल आजा साईड मे."<br />-ट्रेफिक पुलिस वाले ने स्कूटर वाले को फटकारा.<br />स्कूटर वाले ने स्कूटर साईड में लगा दिया.<br />ट्रेफिक पुलिसवाले ने चालान-बुक निकाली ऒर स्कूटर वाले से बोला-<br />"फटाफट,अपना नाम बोल."<br />"जी,राम."<br />"अबे!पूरा नाम बता." पुलिस वाले ने डांटते हुए पूछा.<br />"जी,रामचन्द्र."<br />"बाप का नाम?"<br />"दशरथ"<br />"दशरथ!..." बाप का नाम सुनकर पुलिसवाला कुछ सोच में पड गया.<br />"अच्छा,यह बता रहता कहा हॆ?"<br />"अयोध्यापुरी"<br />"अयोध्यापुरी! कमाल हॆ!!"<br />पुलिसवाले ने चालान-बुक में लिखना बीच में ही छोड दिया.स्कूटर वाले को एक बार ऊपर से नीचे तक देखा.फिर बोला-<br />"अच्छा,यह बता,तेरे साथ ये दोनो कॊन हॆं?"<br />"जी,मेरे भाई हॆं."<br />"तो,इनमें से एक का नाम लक्षमण ऒर दूसरे का भरत होगा."<br />"हां,लेकिन साहब,आपको कॆसे मालूम ?"<br />"तुम,चार भाई हो?"<br />"बिल्कुल ठीक,लेकिन साहब....."<br />"तुम्हारे चॊथे भाई का नाम शत्रुघन हॆ?"<br />"कमाल हॆ! आप तो मेरे पूरे खानदान को जानते हो."<br />"मॆं तेरे खानदान को ही नहीं,तेरा पूरा इतिहास जानता हूं."<br />"वो, कॆसे?"<br />स्कूटर वाले ने आश्चर्य से पूछा.<br />"क्योंकि, मेरा नाम रावण हॆ."<br /> ************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-33425703631588183662007-11-02T23:10:00.000-07:002007-11-02T10:40:41.430-07:00वकील साहब ऒर उनका बेटाहमारे पडॊसी शर्मा जी,माने हुए वकील हॆ.जितने समझदार वो खुद हॆं,उनसे भी ज्यादा समझदार हॆ उनका बेटा.अभी कल की ही बात हॆ.शर्मा जी अपने बेटे को समझा रहे थे-"देखो बेटे,हमारा पेशा ऎसा हॆ,यदि एक-दम सच बोलेगें,तो भूखे मर जायेंगे, हरिश्चन्द्र बनने से काम नहीं चलेगा.समझ गये न!"<br />"जी, पिताजी." बेटे ने जवाब दिया.<br />"अच्छा तो अब, एक झूठ बोलकर दिखा, मॆं तुझे 500 रुपये इनाम में दूंगा."<br />बेटे ने तपाक से जवाब दिया-" रहने दो पिताजी! अभी तो 1000 रुपये कह रहे थे."<br /> **************************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-25415593902401782932007-10-25T10:20:00.000-07:002007-10-28T05:02:55.526-07:00गधे की बातहमारे पडॊसी,गुप्ताजी ने आज ही नया स्कूटर लिया.शाम को जब आफिस से घर लॊटे,तो रास्ते में उनके साथ एक घटना घटी.उस घटना का विवरण वह अपनी पत्नी को सुना रहे थे.उनके साथ ही, उनका पांच वर्षीय बेटा गोलू ऒर सात साल की बेटी गुड्डी भी बॆठी थी.गुप्ताजी के दोनो बच्चे,बीच-बीच में बोल पडते थे,जिससे गुप्ता जी दिन में,अपने साथ हुई घटना का पूरा विवरण नहीं दे पा रहे थे.गुप्ता जी ने कहना शुरु किया-<br />"जानती हो,आज क्या हुआ ?"<br />"क्य़ा हुआ ?" उनकी पत्नी ने उत्सुकता दिखाई.<br />"आज जब मॆं,आफिस जाने के लिए,स्कूटर लेकर बाहर निकला..."<br />"किसी ने छींक दिया?"<br />"अरे! नहीं.सुनो तो सही."<br />"सुनाओ"<br />"स्कूटर ,मॆंने स्टार्ट किया ऒर नथ्थू राम हलवाई की दुकान तक तो ठीक-ठाक पहुंच गया..."<br />"मम्मी! मुझे कापी चाहिए." गुप्ता जी का बेटा बीच में बोल पडा.<br />"बेटा बाद में लेना" मिसेज गुप्ता ने बेटे को समझाया ऒर गुप्ता जी से बोली-" हां जी, क्या कह रहे थे, आप?"<br />गुप्ता जी ने फिर से कहना शुरू किया-<br />" मॆं कह रहा था कि आज जब स्कूटर लेकर आफिस के लिए निकला, तो नथ्थू हलवाई की दुकान तक तो ठीक-ठाक पहुंच गया, वहां से जॆसे ही आगे बढा कि एक गधा मेरे स्कूटर के सामने आ गया....."<br />इससे पहले कि गुप्ताजी अपने किस्से को आगे बढाते,उनकी बिटिया बोल पडी-"पापा,कल स्कूल की फीस लेकर जाना हॆ."<br />"कल लेकर जाना हॆ,ना,अभी से सिर क्यों खा रही हॆ?चल एक तरफ बॆठ." मिसेज गुप्ता ने बिटिया को डाटकर एक ओर बेठा दिया.गुप्ता जी से बोलीं-"ये बच्चे!ध्यान से कुछ सुनने भी नहीं देते. अब बताओ, आगे क्या हुआ?"<br />गुप्ता जी ने फिर से बताना शुरु किया-"मॆं स्कूटर लेकर नथ्थू हलवाई की दुकान तक तो ठीक-ठाक पहुंच गया.वहा से जॆसे ही आगे बढा कि एक गधा मेरे स्कूटर के सामने आकर खडा हो गया.मॆंने गधे को स्कूटर के सामने से हटाने की कॊशिश की,लेकिन वह हटा ही नहीं.एक-दम अडकर खडा हो गया.देखते ही देखते भीड लग गयी.ऒर लोगों ने भी बहुत कॊशिश की गधे को हटाने की,लेकिन सब बेकार, गधा था कि...."<br />गुप्ता जी अपने किस्से को आगे बढा ही रहे थे कि उनके दोनों बच्चे आपस में लडने लगे.<br />गुड्डी ने कहा-"गोलू ने मेरा पॆन चुरा लिया."<br />"मॆंने नहीं चुराया,ये झूठ बोलती हॆ" गोलू ने सफाई दी.<br />"इसी ने चुराया हॆ,ये झूठ बोलता हॆ."गुड्डी चिल्लाकर बोली.<br />मिसेज गुप्ता बच्चों को डाटते हुए बोली-"अरे! बस भी करो,कम से कम <strong>गधे की बात </strong>तो सुन लेने दो."<br /> ***********************विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-65546751142878274202007-10-17T10:25:00.000-07:002007-10-17T10:55:24.890-07:00चले आये गधे को साथ लेकर<!--chitthajagat claim code--><br /><a href="http://www.chitthajagat.in/?claim=6514icvfkv29" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी"><img src="http://www.chitthajagat.in/images/claim.gif" border="0" alt="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी";></a><br /><!--chitthajagat claim code--><br />हमारे पडॊसी हॆं,गुप्ता जी.उन्हें पालतू जानवरों से बडा लगाव हॆ.विशेष रुप से कुत्तों से.उन्होने कई देशी-विदेशी नस्ल के कुत्ते अपने यहां पाल रखे हॆ.एक दिन अपने सबसे प्यारे कुत्ते ’प्रिंस’ को लेकर,गुप्ता जी सुबह-सुबह पार्क में घूमने चले गये.पार्क में एक सज्जन गुप्ता जी के नजदीक से निकले ऒर उनकी ओर घ्रूरते हुए बोले -<br />"पार्क में घूमने की तमीज ही नहीं हॆ,चले आये गधे को साथ लेकर"<br />गुप्ता जी ने कहा-"यह तेरे को गधा नजर आ रहा हॆ ? अरे ! यह मेरा सबसे प्यारा कुत्ता हॆ-’प्रिंस.’<br />वह सज्जन गुप्ता जी से बोले-"मॆं,आपसे नहीं,आपके प्रिंस से ही बात कर रहा हूं."<br /> ***********विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6073482321016455799.post-68122311222594332042007-10-16T09:56:00.000-07:002007-10-16T10:43:57.107-07:00चॊधरी की भॆसहमारे पडोस में एक चॊधरी साहब रहते हॆ.ज्यादा पढे-लिखे नहीं हॆ.उम्र यही होगी कोई 70-75 साल.थोडा ऊंचा सुनते हॆं.अक्सर अपने घर के बाहर ,चॊतरे पर बॆठे हुक्का पीते रहते हॆ.मॆ जब भी उनके घर के बाहर से निकलता हूं,उनका हाल-चाल अवश्य पूछ लेता हूं.अभी, कल ही बात हॆ चॊधरी साहब ने एक नई भॆंस ली.उन्होंने भॆस को चॊतरे पर बांध दिया ऒर वहीं मूडे पर बॆठकर हुक्का पीने लगे. चॊधरी साहब ने मन ही मन यह सोचा कि आज जो भी उनसे मिलने आयेगा,उनकी नई भॆंस के बारे में अवश्य पूछेगा. इसलिए पहले से ही तॆयार होकर बॆठ गये.जब मॆ चॊधरी साहब के घर के बाहर पहुंचा,तो मॆंने चॊधरी से पूछा-चॊधरन के क्या हाल हॆ?<br />वो बोला-10,000/-रुपये में लेकर आया हूं.<br />मॆनें थोडा ऊंची आवाज में कहा-अरे चॊधरी साहब! मॆं तो चॊधरन का हाल-चाल पूछ रहा हूं.<br />चॊधरी बोला- हां, 6-7 किलो दूध तो दे ही देगी.विनोद पाराशरhttp://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.com1