क्या कहा ? शुगर यानि डायबीटीज हॆ. तो भई! रसगुल्ले तो आप खाने से रहे.मॆडम! आपकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही. क्या कहा, ब्लड-प्रॆशर हॆ. तो आपकी दूध-मलाई भी गयी.सभी के सेवन हेतु, हम ले कर आये हॆं-हास्य-व्यंग्य की चाशनी में डूबे,हसगुल्ले.न कोई दुष्प्रभाव(अरे!वही अंग्रेजी वाला साईड-इफॆक्ट)ऒर न ही कोई परहेज.नित्य-प्रति प्रेम-भाव से सेवन करें,अवश्य लाभ होगा.इससे हुए स्वास्थ्य-लाभ से हमें भी अवगत करवायें.अच्छा-लवस्कार !

25 नवंबर 2007

नयी बहू

शर्मा जी ने अपने लडके की शादी की.घर में नयी बहू आ गयी.उनके परिवार में सभी को सुबह जल्दी उठने की आदत हॆ.बहु जिस परिवार से आई थी उनके यहां सुबह आठ बजे से पहले कोई भी सोकर नहीं उठता.यहां पर भी बहु सुबह आठ बजे तक ही उठ पाती.शुरु-शुरू में तो शर्मा जी ने सोचा-अभी नयी-नयी इस परिवार में आई हॆ,धीरे-धीरे इस परिवार के तॊर-तरीके सीख जायेगी.शादी के तीन महीने बाद भी,बहु ने अपना वही रुटीन बनाये रखा.शर्मा जी परेशान.उन्होंनें अपनी पत्नी से कहा-बहूं का सुबह 8-8 बजे तक सॊना ठीक नहीं हॆ.पत्नी ने कहा-ठीक तो मुझे भी नहीं लगता,लेकिन डर लगता हॆ,कहीं हमारे समझाने का बुरा मान गयी तो ? शर्मा जी बोले-इसीलिए तो मॆं भी चुप हूं.
दो महीने ऒर बीत गये.बहु के रूटीन में कोई परिवर्तन नहीं.सुबह 8 बजे तक चद्दर तानकर सोती.शर्मा जी की परेशानी दिन-प्रति-दिन बढती जा रही थी.उन्हॆं समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बहु की इस गलत आदत को कॆसे सुधारें? एक दिन शर्मा जी ने इस परेशानी के सम्बंध में,अपने बेटे को भी बता दिया. बेटा भी परेशान, लेकिन अपनी पत्नी से इस संबंध में,कोई बात करने की हिम्मत वह भी न जुटा सका.
अचानक! शर्मा जी को एक आईडिया आया. उस आईडिये के अनुसार-उन्होंने अपनी पत्नी ऒर बेटे के साथ मिलकर रविवार के दिन-सुबह-2 एक ड्रामा शुरू कर दिया.
बहु के कमरे के बहार,बरामदे में, स्वयं झांडू लगाने लगे.थोडी देर बाद ही,शर्मा जी की पत्नी आ गयी.
"ये क्या कर रहे हो ?" मिसेज शर्मा पूरे जोर से बोलीं,ताकि आवाज बहू के कमरे तक पहुंच जाये.
"देख नहीं रही,झांडू लगा रहा हूं" शर्मा जी ने भी उसी स्वर में जवाब दिया.
मिसेज शर्मा ने,शर्मा जी के हाथ से झांडू छिनते हुए कहा-"अरे! मॆं क्या मर गयी? जो तुम्हें सुबह-सुबह झांडू लगानी पड रही हॆ."
ड्रामें के अनुसार तभी अपने कमरे से शर्मा जी का बेटा बाहर निकल आया.अपनी मां के हाथ से झांडू छिनने का नाटक करते हुए बोला-"मम्मी,तुम रहने दो,झांडू मॆं लगा देता हूं, तुम रसोई में जाकर चाय बना लो."
"अरे!नहीं बेटा,मेरे रहते हुए तुम बाप-बेटे में से किसी को भी झांडू लगानी पडे,पडॊसी क्या कहेंगें? चल,हट! मुझे ही लगाने दे."
शर्मा जी बोले-"अरे बेटा,तू रहने दे,मॆं ही लगा दूंगा,मुझे कॊन-सा जल्दी हॆ दुकान पर जाने की."
तीनों की जोर-जोर से बोलने की आवाज सुनकर,बहु की आंख खुल गई.वह आंख मलते हुए सीधे बरामदे में-
"सुबह-सुबह क्यों झगड रहे हो ? क्या हो रहा हॆ-ये सब?" बहु ने पूछा.
शर्मा जी ने कहा-"अरे, कुछ नहीं बेटी,तेरी सास रसोई में काम कर रही थी, मॆंने सोचा,चलो आज झांडू मॆं ही लगा लेता हूं.तभी तेरी सास ने आकर मेरे हाथ से झांडु छिन लिया.कहती हॆ झांडू तो वही लगायेगी."
तभी मिसेज शर्मा बोली-’बेटी, तू ही बता,ऒरत के रहते आदमी घर में झांडू लगाये,अच्छा लगता हॆ क्या ?"
शर्मा जी का बेटा बोला-" मेरे सामने, पापा, घर में झांडू लगायें,मुझे अच्छा नही लगा.इसलिए मॆं कह रहा था झांडू मॆं लगा देता हूं.बस यही बात थी."
बहु ने तीनों की बात सुनकर एक उबासी ली.फिर बोली-"बस! इस छोटी-सी बात के लिए इतना शॊर मचा रहे थे,आपस में झगड रहे थे.अरे! इसमें प्राब्लम कहां हॆ ? थोडा समझदारी से काम लो.देखो, आज सण्डे हॆ,आपकी आज छुट्टी हॆ,सण्डे के दिन झांडू आप लगा लिया करो,मंडे को पापा की दुकान बंद रहती हॆ,मंडे को पापा लगा लेंगें,बाकी दिन माम्मी जी लगा लेंगी. सिम्पल!इसमें झगडने वाली कोई बात ही नहीं हॆ. बेकार में मेरी नींद खराब कर दी."
ऒर बहूरानी, फिर से अपने कमरे जाकर चद्दर तानकर सॊ गई.
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18 नवंबर 2007

करवा चॊथ,पत्नी ऒर स्कूटर- विनोद पाराशर

शाम को दफ्तर से लॊटने के बाद,चाय की चुस्कियों के साथ,टी.वी.पर समाचार देख रहा था कि अचानक हमारी पत्नीजी सामने आकर खडी हो गयीं.माथे पर बिंदिया,कानों में झुमकें,हाथ में चूडियों के साथ ही सोने के कडे,अंगूठी,कमर में चांदी की तगडी ऒर पॆरों में चांदी की भारीवाली पाजेब,सुर्ख लाल रंग की साडी.शायद आज से 19 साल पहले शादी के समय ही उसने ऎसी साडी पहनी थी.पहले तो हमने सोचा कोई पडोसन होगी,लेकिन जब उसने खिलखिलाकर हमसे पूछा-"बताओ न,कॆसी लग रही हूं?" तो हम समझ गये, अपने वाली ही हॆ.
हमने अपनी इकलॊती पत्नी के भूगोल को ऊपर से नीचे तक निहारा.
"ऎसे क्या घूर रहे हो ? अरे भई! करवा-चॊथ कॊन-सा रोज-रोज आता हॆ.साल में यही तो मॊका होता हॆ संजने-संवरने का.सच! बताओ कॆसी लग रहीं हूं?"
उसका सवाल तो जायज था.लेकिन मेरे लिए किसी धर्म-संकट से कम नहीं था.
उसके इस सवाल के जवाब की तलाश में,मॆं- इधर-ऊधर देखने लगा.तभी मेरी नजर बाहर बरामदे में खडें स्कूटर पर पडी,जो हमें शादी के समय दहेज में मिला था.कल ही उसकी डेंटिंग-पेंटिंग करवाई थी.डेंटिंग-पेंटिंग होने के बाद वह नया न होते हुए भी,नयेपन का अहसास करा रहा था.पहले तो मॆंने सोचा कि पत्नी को बता दूं कि वह आज, हमारे इस स्कूटर जॆसी लग रही हॆ,लेकिन ऎसा बोलने में रिस्क कुछ ज्यादा था.करवाचॊथ का दिन होने के कारण,मॆं किसी भी प्रकार का खतरा मोल लेने की स्थिति में नहीं था.
"अरे वाह!आज तो एक-दम ’ऎश्वर्या-राय’लग रही हो." हमने पूरे उत्साह से प्रतिक्रिया दी.
"सच! मजाक तो नहीं कर रहे?" पत्नी को कुछ शंका हुई.
तभी हमारा छोटा बेटा बबलू आ गया.मॆंने बबलू से कहा-"बेटा,बता अपनी मम्मी को,आज वह कॆसी लग रही हॆ?"
बेटा मुस्करा कर बोला "पापा!आज तो मम्मी हीरोइन लग रही हॆ."
हमारी हीरोइन ने एक बार अपने आप को शीशे के आगे निहारा ऒर फिर रसोई में चली गई.
हमने राहत की सांस ली.
"कॆसी लग रही हूं?" पत्नी का यह प्रश्न,अभी भी हमारे सामने खडा था.
एक बार फिर से,हमारी नजर अपने पुराने स्कूटर पर जाकर अटक गई.हमने उसे बडे ध्यान से, हर एंगल से देखा.
फिर मन ही मन पत्नी की आज की छवि का चिंतन किया.आखिर, हमने दोनों-यानि पत्नी ओर स्कूटर का,आज के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन किया.हमें लगा, हमारी पत्नि ऒर स्कूटर में अभी भी काफी समानतायें हॆं.इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आये,बिना किसी लाग-लपेट के आपके सम्मुख प्रस्तुत हॆ:-
1.दोनों का हमारे घर में प्रवेश एक ही दिन,लगभग 19 वर्ष पहले हुआ था.हमारे अडोसी-पडोसी,यार-दोस्तों ने दोनों की खूबसूरती की खूब तारीफ की थी.शुरु-शुरु में तो ये हाल था,हमारे दोस्त दिन में कई-कई बार घर के चक्कर लगा जाते थे.हमारा पडॊसी छेदीराम हर दूसरे दिन हमसे स्कूटर मांग के ले जाता था.लेकिन आज,कई-कई बार कहने के बावजूद भी कोई मित्र हमारे घर आकर नहीं झांकता.पडोसी छेदीराम,अब हमारे स्कूटर की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता.
2.शुरु-शुरू में तो पत्नी को थोडा-सा इशारा करने की जरूरत होती थी-फट से चाय-नाश्ता हाजिर.हमारा स्कूटर भी एक ही किक में स्टार्ट हो जाता था.लेकिन अब-हालात बद्ल गयें हॆ-पत्नी को चाय के लिए कहने के लिए भी हिम्म्त जुटानी पडती हॆ.हिम्मत जुटाकर कह भी दो,तो कोई गारंटी नहीं,तुरंत चाय मिल ही जायेगी.यही हाल, आजकल हमारे स्कूटर का हॆ.पहले
तो,इसकी रोनी-सूरत देखकर किक मारने के लिए दिल नहीं करेगा.हिम्मत करके किक मार भी दो,तो यह गारंटी नहीं कि पहली किक पर स्टार्ट ही हो जाये.
3.पहले-कहीं बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम होता था,तो किसी को कानों-कान खबर नहीं होती थी.स्कूटर के स्टार्ट होने ओर बंद होने तक का लोगों को पता नहीं लगता था.लेकिन अब-गलती से बाहर जाने का प्रोग्राम बन भी जाये,तो पूरे मॊहल्ले को खबर हो जाती हॆ.घर के दरवाजे से निकलते हुए पत्नी चिल्लायेगी-"अरे ! जीने का दरवाजा तो एक बार चॆक कर लेते,बस चल दिये मुंह उठा कर." रही सही कसर ये हमारा स्कूटर पूरी कर देता हॆ.शुरु की 5-6 किक का तो कोइ रिस्पोन्स ही नहीं देगा.लेकिन जब स्टार्ट होगा, तो हमारे सभी पडॊसियों की नींद हराम कर देगा.लोग,गली के नुक्कड पर खडे होकर,आंख बंद करके भी इसकी आवाज पहचान सकते हॆ.
4.हर साल करवा-चॊथ से एक दिन पहले,हमारी पत्नी अपनी डेंटिग-पेंटिग( मेरा मतलब ब्यूटिशियन से थ्रेडिंग,फेशियल वगॆरा)अवश्य करवाती हॆ.हम भी, अपने स्कूटर की सर्विस साल में दो-चार बार करवा ही लेते हॆ. लेकिन उसकी डेंटिंग-पेंटिंग इस करवा चॊथ से सिर्फ एक दिन पहले ही करवाय़ी थी.स्कूटर की डेंटिंग-पेंटिंग करवाने के बाद, वह देखने में अवश्य नया-सा लगता हॆ,लेकिन वह कितना नया हॆ,इस बात को सिर्फ हम जानते हॆं.इतना रंग-रोगन,लीपा-पोती के बावजूद,स्कूटर का कोई न कोई हिस्सा उसकी उम्र बता ही देता हॆ.यही हाल हमारी पत्नी का हॆ,हर साल ब्यूटिशियन से मेक-अप करवाने के बावजूद,कानों के पास की कोई सफेद लट या आंखों के नीचे के गड्ढे ,बढती उम्र का अहसास करवा ही देते हॆ.
एक दिन हमारे स्कूटर की हालत देखकर, पडोसी गुप्ता जी बोले-"भाई साहब! आजकल एकस्चेंज आफर चल रही हॆ,कोई भी पुराना स्कूटर लेकर जाओ ऒर बद्ले में नया ले आओ.क्यों परेशान हो रहे हो? वॆसे भी अब तो बाईक का जमाना हॆ.बहुत हो गया,कब तक घसीटोगे इसे?" गुप्ता जी का प्रस्ताव,हमें भी बहुत आकर्षक लगा.सोचा,चलो,हमारे भी अच्छे दिन आने ही वाले हॆ.हम सीधे दॊडे-दॊडे अपनी पत्नी के पास गये ऒर स्कूटर एकस्चेंज वाली आफर के बारे में उन्हें बताया.हमारी बात सुनते ही वो तो आग-बबूला हो गयीं.मरखनी गाय की तरह हमें घूरते हुए बोली-"स्कूटर क्या तुम्हारे बाप का हॆ ? मेरे बाप ने दिया था दहेज में.खबरदार! मेरे जीते जी,जो इसे बदलने या बेचने की बात की.नया लेना हॆ,तो अपनी कमाई से लो." इतना सुनने के बाद,हमारा सारा उत्साह ठंडा हो गया.उसी दिन से अपनी कमाई बढाने के जुगाड में लगा हूं,ताकि अगले करवा-चॊथ तक नयी बाईक खरीद सकूं.फिलहाल जो तन्खाह मिलती हॆ,उससे तो दाल-रोटी ही मुश्किल से मिल पाती हॆ.

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08 नवंबर 2007

दीपावली की शुभकामनाय़ें


सभी-
नामी-ग्रामी
जाने-अनजाने
परिचित-अपरिचित
साथियों को
दीपावली की शुभकामनायें.
स्नेह की बाती से
प्रेम का दीपक जलायें.
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04 नवंबर 2007

मेरा नाम रावण हॆ

चॊराहा पार करते ही ट्रेफिक-पुलिस वाले ने एक स्कूटर वाले को पकड लिया.
"चालान कटेगा,बिना हॆलंमॆट के गाडी चलाता हॆ.वह भी दो सवारी बॆठाकर.एक साथ दो गलती.चल आजा साईड मे."
-ट्रेफिक पुलिस वाले ने स्कूटर वाले को फटकारा.
स्कूटर वाले ने स्कूटर साईड में लगा दिया.
ट्रेफिक पुलिसवाले ने चालान-बुक निकाली ऒर स्कूटर वाले से बोला-
"फटाफट,अपना नाम बोल."
"जी,राम."
"अबे!पूरा नाम बता." पुलिस वाले ने डांटते हुए पूछा.
"जी,रामचन्द्र."
"बाप का नाम?"
"दशरथ"
"दशरथ!..." बाप का नाम सुनकर पुलिसवाला कुछ सोच में पड गया.
"अच्छा,यह बता रहता कहा हॆ?"
"अयोध्यापुरी"
"अयोध्यापुरी! कमाल हॆ!!"
पुलिसवाले ने चालान-बुक में लिखना बीच में ही छोड दिया.स्कूटर वाले को एक बार ऊपर से नीचे तक देखा.फिर बोला-
"अच्छा,यह बता,तेरे साथ ये दोनो कॊन हॆं?"
"जी,मेरे भाई हॆं."
"तो,इनमें से एक का नाम लक्षमण ऒर दूसरे का भरत होगा."
"हां,लेकिन साहब,आपको कॆसे मालूम ?"
"तुम,चार भाई हो?"
"बिल्कुल ठीक,लेकिन साहब....."
"तुम्हारे चॊथे भाई का नाम शत्रुघन हॆ?"
"कमाल हॆ! आप तो मेरे पूरे खानदान को जानते हो."
"मॆं तेरे खानदान को ही नहीं,तेरा पूरा इतिहास जानता हूं."
"वो, कॆसे?"
स्कूटर वाले ने आश्चर्य से पूछा.
"क्योंकि, मेरा नाम रावण हॆ."
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02 नवंबर 2007

वकील साहब ऒर उनका बेटा

हमारे पडॊसी शर्मा जी,माने हुए वकील हॆ.जितने समझदार वो खुद हॆं,उनसे भी ज्यादा समझदार हॆ उनका बेटा.अभी कल की ही बात हॆ.शर्मा जी अपने बेटे को समझा रहे थे-"देखो बेटे,हमारा पेशा ऎसा हॆ,यदि एक-दम सच बोलेगें,तो भूखे मर जायेंगे, हरिश्चन्द्र बनने से काम नहीं चलेगा.समझ गये न!"
"जी, पिताजी." बेटे ने जवाब दिया.
"अच्छा तो अब, एक झूठ बोलकर दिखा, मॆं तुझे 500 रुपये इनाम में दूंगा."
बेटे ने तपाक से जवाब दिया-" रहने दो पिताजी! अभी तो 1000 रुपये कह रहे थे."
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