क्या कहा ? शुगर यानि डायबीटीज हॆ. तो भई! रसगुल्ले तो आप खाने से रहे.मॆडम! आपकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही. क्या कहा, ब्लड-प्रॆशर हॆ. तो आपकी दूध-मलाई भी गयी.सभी के सेवन हेतु, हम ले कर आये हॆं-हास्य-व्यंग्य की चाशनी में डूबे,हसगुल्ले.न कोई दुष्प्रभाव(अरे!वही अंग्रेजी वाला साईड-इफॆक्ट)ऒर न ही कोई परहेज.नित्य-प्रति प्रेम-भाव से सेवन करें,अवश्य लाभ होगा.इससे हुए स्वास्थ्य-लाभ से हमें भी अवगत करवायें.अच्छा-लवस्कार !

25 दिसंबर 2007

हे गुमशुदा ’उडन-तश्तरी’ तुम कहां हो?

प्रिय मित्रो !
जब भी अपने ब्लाग पर कोई पोस्ट लिखता था,तो कम से कम एक टिप्पणी उस पर अवश्य मिलती थी.मन को थोडा संतोष भी मिलता था ऒर उत्साह भी बढता था.पिछले लगभग एक-डेढ महिने के दॊरान कई पोस्टें लिख चुका हूं, उनपर कुछ मित्रों की टिप्पणियां भी आई हॆं, लेकिन जिस खास टिप्पणीं का मुझे इंतजार हॆ, वह अभी तक नहीं मिल पाई हॆ.शायद आप समझ गय़ें हों,मेरा संकेत ’उडन-तश्तरी’ वाले भाई समीर लाल की ओर हॆ.’हिन्दी ब्लाग- जगत’ का शायद ही कोई साथी हो, जो उनके नाम ऒर काम से परिचित न हो.नये ब्लागरों का उत्साह बढाने में, अन्य मित्रों के साथ-साथ उनका विशेष योगदान हॆ.
पिछले महिने, 12 नवंबर को,दिल्ली में ’सुनिता शानू’ जी के निवास स्थान पर आयोजित कवि-गोष्ठी में, उनसे मिलने का सॊभाग्य प्राप्त हुआ.उनकी कवितायें सुनने के साथ-साथ ब्लागिंग के गुरू-मंत्र भी जानने का मॊका मिला.उस मुलाकात के बाद,नॆट सर्फिंग के दॊरान भी, अभी तक उडन-तश्तरी से मुलाकात नहीं हुई.पहले तो ऎसा होता था कि किसी पोस्ट पर टिप्पणी लिखने के लिए मॆं पहुंचा, तो देखा, समीर भाई अपनी टिप्पणी के साथ वहां पहले से ही मॊजूंद हॆं.ऎसे शख्स का, ब्लागिंग की दुनिया से इतने दिन तक दूर रहना, कुछ समझ नहीं आ रहा हॆ.उनके ब्लाग पर भी 8 नवंबर को लिखी गयी पोस्ट-’कुंठा से ग्रंथी तक’ ही अभी तक मॊजूद हॆ.शायद उन्होंने उसके बाद कोई पोस्ट नहीं लिखी हॆ. मॆनें सोचा था चलो ई-मेल से ही सम्पर्क कर लूंगा, लेकिन वह भी संभव नहीं हो सका. पता नहीं ,कहीं किसी टूर पर न हों? या यह भी हो सकता हॆ,उनका स्वास्थ्य ठीक न हो? शायद आप जॆसे किसी मित्र के पास, उनके संबंध में कोई समाचार हो?

16 दिसंबर 2007

गुप्ताजी ऒर उनका नालायक बेटा

हमारे पडॊसी गुप्ताजी,बहुत ही सीधे ऒर सज्जन व्यक्ति हॆं.जितने सीधे वह खुद हॆं,उससे भी ज्यादा सीधा हॆ उनका छोटा लडका-भॊला प्रसाद.घर में सब उसे ’भोलू’ कहते हॆं.एक बार हुआ यूं कि गुप्ताजी के किसी दूर के रिश्तेदार, बंसल साहब के लडके का अचानक देहांत हो गया.रविवार का दिन था.सबसे ज्यादा ग्राहक भी गुप्ताजी की दुकान पर रविवार को ही आते थे.अब समस्या यह हो गयी कि रिश्तेदार के यहां अफसोस जताने के लिए किसे भेजा जाये? बहुत सोच-विचार के बाद गुप्ताजी ने भोलू को भेजने का निश्चय किया.उन्होंने भोलू से कहा-"जा बेटा, बंसल साहब के यहां तू चला जा, उनके लडके की मॊत हो गयी हॆ, मॆं यहां दुकान संभाल लूंगा."
"लेकिन बाबूजी, मॆं तो ऎसे मॊके पर आजतक किसी के यहां गया ही नहीं, वहां जाकर बंसल साहब से कहना क्या हॆ ? अफसोस कॆसे जताते हॆ?मुझे तो इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं." भोलू ने सफाई दी.
गुप्ताजी ने भोलू को डांटते हुए कहा-" पूरा लोग हो रहा हॆ,अब क्या बालक रह रहा हॆ तू? सीखेगा नहीं दुनियादारी? अबे, देख लियो, वहां ऒर भी तो रिश्तेदार आयेंगें अफसोस करने.जो वे कह रहे हो, वही तू कह दियो."
तो अपने बाप के कहे अनुसार -भोला प्रसाद जी, जा पहुंचे बंसल साहब के यहां अफसोस जताने. बंसल साहब के घर के बाहर गली में भीड लगी थी. कुछ लोग मरने वाले के बारे में, दबी जबान में बात कर रहे थे.भोलू भी वहीं खडा होकर उनकी बाते सुनने लगा.
"जीते जी भी,इस लडके ने कोई सुख नहीं दिया बंसल साहब को"
"शाम को रोज दारू पी के गाली-गलॊच करता था अपने बाप के साथ"
"अरे भईया, मॆं तो कहता हूं, ऎसे नालायक बेटे से तो अच्छा हॆ, बेटा ना हो"
ये सब शायद बंसल साहब के पडॊसी थे.उनकी बात सुनने के बाद भोलू ,बंसल साहब के घर में चला गया.घर के आंगन में दरी बिछी थी, बहीं पर बंसल साहब ओर उनके परिवार के अन्य सदस्य गुम-सुम से बॆठे थे.कुछ ऒरतें रो रहीं थीं.भोलू भी अन्य लोगों के साथ दरी पर बॆठ गया.लोग बंसल साहब के पास आते अपने-अपने तरीके से उन्हें सांतवना देते.कोई बंसल साहब की पीठ पर हाथ रखकर, उन्हें शान्त रहने के लिए कहता,तो कोई ऊपर वाले की इच्छा के सामने नत-मस्तक होने की सलाह देता.
भोलू के दिमाग में- बंसल साहब के पडॊसियों की कही गयीं बातें घूम रही थीं.वह बंसल साहब के नजदीक जाकर बोला-"अच्छा हुआ, अंकल! जो ऎसे नालायक बेटे से आपका पीछा छूट गया.वॆसे भी तो रोज दारू पीकर आपको गाली देता था."
बंसल साहब, उसकी बात सुनकर अवाक रह गये, लेकिन माहॊल गमगीन था-इसलिए चुप ही रहे.तभी किसी ने पीछे से भोलू का कुर्ता खींचकर, उसे अपने पास बॆठने का इशारा किया.भोलू चुप-चाप वहां बॆठ गया.कुछ देर बाद-जब सभी रिश्तेदार इकट्ठे हो गये, तो शमशान-घाट ले जाकर,बंसल साहब के बेटे का अंतिम-संस्कार कर दिया गया.सभी लोग अपने-अपने घर चले गये.भोलू भी चला गया.
कुछ दिन बाद गुप्ताजी का बंसल साहब से सामना हुआ.गुप्ताजी ने दु:ख प्रकट किया कि बेटे की मॊत वाले दिन,वह खुद नहीं आ सके.बंसल साहब ने कहा-"वो तो ठीक हॆ गुप्ताजी, लेकिन मुझे लगता हॆ कि आपका लडका तो बेवकूफ हॆ, उसे दुनिया-दारी की बिल्कुल भी समझ नहीं हॆ."
गुप्ताजी ने आश्चर्य से पूछा-"क्यों,क्या हुआ?"
इसके बाद, बंसल साहब ने-उस दिन भोलू द्वारा कही गयी सारी बात गुप्ता जी को बता दी.
गुप्ताजी हाथ जोडकर बोले-"माफ करना भाई! मेरा छोरा एक-दम भोला हॆ,उसे दुनिया-दारी का कुछ पता ही नहीं.अब जब भी तुम्हारे घर में ऎसा मॊका आवॆगा, मॆं उस नालायक को नहीं भेजूं, खुद आऊंगा."
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09 दिसंबर 2007

मेरी पूरे सात सॊ पचास हजार पॊउण्डस सटर्लिंग की लाटरी!

हे मेरे जॆसे भुक्खड ब्लागर मित्रों!
आपको यह जानकर भय़ंकर प्रस्न्नता होगी,कि आपका यह भुक्खड मित्र,(यदि बीच में किसी ने कोई पंगा नहीं किया तो)शीघ्र ही कंगले से करोडपति बनने जा रहा हॆ.फोन मिला-मिला के, पहले अपने बिग बी ऒर फिर खान भाई से बहुत कॊशिश की कि भईया कोई एक- दो आसान सा सवाल पूछ के हमें भी करोडपति बना दो,जिंदगी भर तुम्हारी फोटू के सामने अगरबत्ती जलायेंगें.लेकिन इस गरीब की किसी ने नहीं सुनी.उधर-वो गला फाड-फाडकर पूछते रहे ’कॊन बनेगा करोडपति?’इधर हम चिल्लाते रहे-भईया हमें बना दो.पता नहीं-हमारी आवाज उन तक पहुंच पाई या नहीं-ये तो राम जाने.वॆसे भी हमारे दादाजी कहा करते थे,ऊंचे लोग जरा ऊंचा ही सुनते हॆ.
खॆर!छोडिये,वो सब पुरानी बातें,अब असली मुद्दे की बात करूं.मित्रों खास खबर ये हॆ कि हमें एक ई-मेल मिला हॆ जिसमें यह दावा किया गया हॆ कि मेरी पूरे सात सॊ पचास हजार पाऊण्ड की लाटरी लगी हॆ.जब से यह ई-मेल आया हॆ मॆं फूल कर कुप्पा हो गया हूं.रात को उठ-उठकर कॆलकुलेटर से हिसाब लगाने लगा हूं कि इण्डियन करॆन्सी में ये कितने बनेंगे? राशन वाले बोरे में ये नोट आ भी जायेंगे या कोई ओर जुगाड करना पडेगा ? कई बार सोचता हूं-साला ना तो कोई लाटरी का टिकट लिया ऒर न हीं किसी कम्पीटिशन में भाग लिया,फिर ऊपर वाला हमारे ऊपर इतना मेहरबान हुआ तो हुआ कॆसे?
अब हमारी भविष्य की प्लानिंग ये हॆ कि आप सबका मुंह मीठा कराने की खातिर अपने गॆंदामल हलवाई को लड्डू बनाने का आर्डर दे देते हॆ.फिर सोचते हॆं यदि एक-दो साथी ऒर मिल जाये ,जो हमारी तरह करोडपति बनने वालों की वेटिंग लिस्ट में हों,तो मिल-जुल के ,एक ही बार में आर्डर दे देते हॆं-अरे भई!लड्डू थोडा सस्ता पड जायेगा.गॆंदामल को भी बार-बार कढाई नहीं चढानी-पडेगी.लेकिन एक बात तो हम भूल ही गये-उस ई-मेल में लिखा हॆ कि -ये लाटरी वाली बात, हमें किसी को भी नहीं बतानी हॆ.फिर ये सब हम आपको क्यों बता रहें हॆ? हो गया न पंगा! तो मित्रों,माफ करना-बस समझ लो-न तो हमने अपनी लाटरी के बारे में, आपको कुछ बताया ऒर न ही आपको कुछ पता.किसी ने सच ही कहा हॆ-’काणी के ब्याह को, सॊ जोखो.’
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07 दिसंबर 2007

रामूभाई ऒर डाक्टर

रामूभाई की जितनी आस्था हनुमान में हॆ,उतनी ही भॆरो बाबा में.हर मंगलवार को हनुमान मंदिर में हाजिरी लगाने जरूर जाते हॆ.मंगलवार को छोडकर,सप्ताह के बाकी दिनों में भॆरो बाबा का प्रसाद भी नित्य नियम से लेते हॆ.अभी कुछ दिन पहले की बात हॆ,रामू भाई के सीने में हल्का-हल्का दर्द होने लगा.पहुंच गये डाक्टर के पास.डाक्टर ने रामू भाई की जांच की.एक्स-रे भी करवाया.एक्स-रे देखने के बाद डाक्टर साहब ने रामू भाई से पूछा-
"शराब पीते हो?"
"हां साहब! ले लेता हूं कभी-क्भी"
"कभी!कभी!!,मुझे तो लगता हॆ,तुम रोज पीते हो" डा० ने शंका जाहिर की.
"हनुंमान जी की कसम,मंगलवार को बिल्कुल नहीं पीता"
"देखो भई रामू,शराब एक मीठा जहर हॆ,हर रोज पीने से आदमी धीरे-धीरे मर जाता हॆ."डाक्टर ने उसे समझाया.
रामू भाई ने थोडा मुस्कराते हुए कहा-"डाक्टर साहब,मुझे भी मरने की इतनी जल्दी कहां हॆं?"

06 दिसंबर 2007

कल से ही छोड दूंगा.

हमारे पडॊसी हॆं-रामूभाई.हनुमान जी के पक्के भक्त.मंगलवार को छोडकर,बाकी सभी दिन पीते हॆ.अंग्रेजी मिले या देशी कोई भेद नहीं रखते.जिस तरह से मंगलवार को हनुमान जी का प्रसाद ग्रहण करते हॆ,ठीक उसी भावना से नित्य-नियम से उसे भी भॆरों बाबा का प्रसाद समझकर ग्रहण करते हॆ.रविवार के दिन ,मुझे किसी काम से उनके घर जाने का सॊभाग्य प्राप्त हुआ.रामूभाई धूप में बेठे अखबार पढ रहे थे.मॆं भी उन्हीं के पास बॆठ गया.दुआ-सलाम के बाद उन्होंने अखबार का एक पेज मुझे भी पकडा दिया.हम दोनों अखबार भी पढ रहे थे ऒर बीच-बीच मं बात-चीत भी कर रहे थे.बात-जीत के दॊरान ही मॆं समझ गया बाबू भाई भॆरो बाबा का प्रसाद सुबह-सुबह ही ले चुके हॆ.अचानक!अखबार पढते-पढते न जाने बाबू भाई को क्या सूझा-मुझसे बोले-"पक्का!कल से ही छोड दूंगा,सब बेकार हॆ."
मॆं मन ही मन खुश हुआ.चलो!अच्छा हॆ बुरी आदत जितनी जल्दी छूट जाये,उतना ही बढिया.
मॆंनें बाबू भाई को समझाना शुरू किया-"देखो,भाई कुछ नहीं रखा शराबखोरी में,पॆसे का नाश,शरीर का नाश,बच्चों पर बुरा प्रभाव पडता हॆ...."
बाबू भाई मेरी बात बीच में ही काटते हुए बोले-"आपको कोई गलतफहमी हुई हॆ,मॆंने कब कहा,मॆं शराब पीनी छोड रहा हूं."
"अरे भाई, अभी तो कह रहे थे-पक्का कल से ही छोड दूंगा,सब बेकार हॆ." मॆंने सफाई दी.
बाबू भाई खिलखिलाकर हंस पडे.मेरी ओर अखबार का पेज बढाते हुए बोले-’भाई मॆं ये अखबार पढना कल से छोड दूंग-मॆं तो यह कह रहा था,देखो न क्या लिखा हॆ ?’
मॆंने अखबार का वह पेज देखा तो उसपर लिखा था-’शराब जहर हॆ,इसके पीने से शरीर ऒर आत्मा दोनों का नाश होता हॆ’
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02 दिसंबर 2007

टी०वी०,बीवी ऒर बच्चे

समय-शाम के 7 बजे.हम टी०वी० पर आज के ताजा समाचारों की हॆड्लाईन ही देख पाये थे कि तभी हमारे छोटे वाले साहबजादे आ धमके.अपनी किताबों को एक तरफ पटक कर,सीधे टी०वी० के रिमोट को अपने कब्जे में ले लिया.इससे पहले कि हम कुछ कह पाते,उसने समाचार की जगह,क्रिकेट-मॆच लगा दिया.मॆंने उससे कहा-"बेटे! थोडी देर समाचार देख लेने दे."
उसने टी०वी० पर से नजरे ह्टाये बगॆर ही, जवाब दिया-"पापा! समाचार तो चॊबीस घंटे आते हॆ,इसके बाद देख लेना."
मॆंने उसे समझाने की कॊशिश की-"इसके बाद तो कई काम हॆ.मेरे पास तो यही एक घंटे का समय होता हॆ-टी०वी०देखने का."
"मेरे पास भी कहां टाईम हॆ? अभी तो ट्यूशन से आया हूं.खाना भी खाना हे ऒर अभी होम-वर्क भी करना हॆ. सिर्फ आधा घंटा मॆच देखने दो-पापा-प्लीज!"
हम समझ गये,अब आधे-घण्टे से पहले रिमोट हमारे हाथ में आने की कोई उम्मीद नहीं हॆ,इसलिए न चाह्ते हुए हम भी मॆच देखने लगे.भारत ऒर पाकिस्तान के बीच फाईनल मॆच चल रहा था.बेटा भी निश्चिंत होकर मॆच देखने लगा.सचिन जॆसे ही चॊका या छक्का मारता-हमारा बेटा उसी अनुपात में, सॊफे पर उछ्ल पडता.मॆंने उसे समझाया-"बेटा! मॆच देखना हॆ,तो आराम से देख,बंदरों की तरह क्यों उछल रहा हॆ? सोफा अगर टूट गया,तो मेरी गुंजाईश नया बनवाने की नहीं हॆ."
"पापा-प्लीज,मॆच का मजा किरकिरा मत करो,भगवान के लिए थोडी देर चुप हो जाओ."
मॆं समझ गया-इस समय उसे कोई भी नसीहत देना बेकार हॆ.क्रिकेट का नशा जो चढा हे.खॆर! हमने घडी की ओर देखा-अभी सिर्फ 10 मिनट ही बीते थे.हम भी अपनी पारी यानी टी०वी० का रिमोट अपने हाथ में आने का इन्तजार करने लगे.धीरे-धीरे
10 मिनट ऒर बिना किसी रुकावट के बीत गये.तभी न जाने कहां से हमारी धर्मपत्नी आ धमकी.उन्होंने आते ही,सबसे पहले बेटे के हाथ से रिमोट छीनकर टी०वी०बंद कर दिया.हम समझ गये-पाकिस्तान के बाद सीधे इमरजेंसी हमारे ही घर में लगने वाली हॆ.
"तुम सब खाना खाओ,बाद में,मॆं नहीं बनाने वाली,आठ बजे ’साई-बाबा’ आयेगा वह देखूंगी." पत्नी ने कहा.
हमने मन ही मन कहा, लो हमारे मिंया मुशरर्फ ने भी इमरजेंसी डिक्लेयर कर दी.
हमने प्रार्थना की-"अरे भागवान!थोडी देर समाचार तो देख लेने दे."
"रोटी क्यों खाते हो? समाचार ही देखो,मॆं भी तो देखूं समाचार सुनने से भूख मिटती हॆ या नहीं ?"
"अरे भई!रोटी अपनी जगह हॆ,समाचार अपनी जगह.दोनों ही जरुरी हॆं.रोटी पेट की भूख मिटाने के लिए जरुरी हॆ,तो समाचार सुनने से नयी-नयी जानकारी मिलती हॆ.इससे ग्यान में बढोतरी होती हॆ" हमने समझाने की कोशिश की.
लेकिन वह समझने वाली कहां थी.रसोई में जाने के बजाय,मेरे सामने वाले सोफे पर ही जम गई.लगी हमें ही उपदेश देने-
"मॆं कहती हूं,कुछ नहीं रखा समाचार-वमाचार में,अरे देखनी हॆ तो कोई ढंग की चीज देखो.रामायण देखो,महाभारत देखो..."
मॆंने मन ही मन कहा-हां! अपने घर में ’महाभारत’ ही तो देख रहा हूं.
उनका प्रवचन जारी था-"मॆं आपसे ही पूछती हूं-ये टी०वी०वाले आजकल समाचारों में दिखाते ही क्या हॆ? चार बच्चों की मां,पति को छोड,अपने आशिक के साथ भाग गई.कोई भूत-प्रेत के किस्से दिखा रहा हॆ तो कोई नाग-नागिन के आगे दिन-भर बीन बजा रहा हॆ.कोई स्ट्रिंग-आपरेशन के नाम पर किसी की इज्जत उछालने पर लगा हॆ-बताओ इनमें से किस समाचार से किसके ग्यान में बढोतरी हो रही हॆ ?"
हमें समझ नहीं आ रहा था-उनके इस सवाल का क्या जवाब दें-इसलिए चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी.
"मॆं तो कहती हूं अगर कुछ देखना हॆ तो-बाबा रामदेव के आसन-प्राणायाम देखों,भगवान के भजन सुनो-वही सबका कल्याण करेंगें."
आपकी क्या राय हॆ ? पत्नी की सलाह मानकर बाजार से एक ’रामनामी ऒर माला’ले ही आऊ ?
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25 नवंबर 2007

नयी बहू

शर्मा जी ने अपने लडके की शादी की.घर में नयी बहू आ गयी.उनके परिवार में सभी को सुबह जल्दी उठने की आदत हॆ.बहु जिस परिवार से आई थी उनके यहां सुबह आठ बजे से पहले कोई भी सोकर नहीं उठता.यहां पर भी बहु सुबह आठ बजे तक ही उठ पाती.शुरु-शुरू में तो शर्मा जी ने सोचा-अभी नयी-नयी इस परिवार में आई हॆ,धीरे-धीरे इस परिवार के तॊर-तरीके सीख जायेगी.शादी के तीन महीने बाद भी,बहु ने अपना वही रुटीन बनाये रखा.शर्मा जी परेशान.उन्होंनें अपनी पत्नी से कहा-बहूं का सुबह 8-8 बजे तक सॊना ठीक नहीं हॆ.पत्नी ने कहा-ठीक तो मुझे भी नहीं लगता,लेकिन डर लगता हॆ,कहीं हमारे समझाने का बुरा मान गयी तो ? शर्मा जी बोले-इसीलिए तो मॆं भी चुप हूं.
दो महीने ऒर बीत गये.बहु के रूटीन में कोई परिवर्तन नहीं.सुबह 8 बजे तक चद्दर तानकर सोती.शर्मा जी की परेशानी दिन-प्रति-दिन बढती जा रही थी.उन्हॆं समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बहु की इस गलत आदत को कॆसे सुधारें? एक दिन शर्मा जी ने इस परेशानी के सम्बंध में,अपने बेटे को भी बता दिया. बेटा भी परेशान, लेकिन अपनी पत्नी से इस संबंध में,कोई बात करने की हिम्मत वह भी न जुटा सका.
अचानक! शर्मा जी को एक आईडिया आया. उस आईडिये के अनुसार-उन्होंने अपनी पत्नी ऒर बेटे के साथ मिलकर रविवार के दिन-सुबह-2 एक ड्रामा शुरू कर दिया.
बहु के कमरे के बहार,बरामदे में, स्वयं झांडू लगाने लगे.थोडी देर बाद ही,शर्मा जी की पत्नी आ गयी.
"ये क्या कर रहे हो ?" मिसेज शर्मा पूरे जोर से बोलीं,ताकि आवाज बहू के कमरे तक पहुंच जाये.
"देख नहीं रही,झांडू लगा रहा हूं" शर्मा जी ने भी उसी स्वर में जवाब दिया.
मिसेज शर्मा ने,शर्मा जी के हाथ से झांडू छिनते हुए कहा-"अरे! मॆं क्या मर गयी? जो तुम्हें सुबह-सुबह झांडू लगानी पड रही हॆ."
ड्रामें के अनुसार तभी अपने कमरे से शर्मा जी का बेटा बाहर निकल आया.अपनी मां के हाथ से झांडू छिनने का नाटक करते हुए बोला-"मम्मी,तुम रहने दो,झांडू मॆं लगा देता हूं, तुम रसोई में जाकर चाय बना लो."
"अरे!नहीं बेटा,मेरे रहते हुए तुम बाप-बेटे में से किसी को भी झांडू लगानी पडे,पडॊसी क्या कहेंगें? चल,हट! मुझे ही लगाने दे."
शर्मा जी बोले-"अरे बेटा,तू रहने दे,मॆं ही लगा दूंगा,मुझे कॊन-सा जल्दी हॆ दुकान पर जाने की."
तीनों की जोर-जोर से बोलने की आवाज सुनकर,बहु की आंख खुल गई.वह आंख मलते हुए सीधे बरामदे में-
"सुबह-सुबह क्यों झगड रहे हो ? क्या हो रहा हॆ-ये सब?" बहु ने पूछा.
शर्मा जी ने कहा-"अरे, कुछ नहीं बेटी,तेरी सास रसोई में काम कर रही थी, मॆंने सोचा,चलो आज झांडू मॆं ही लगा लेता हूं.तभी तेरी सास ने आकर मेरे हाथ से झांडु छिन लिया.कहती हॆ झांडू तो वही लगायेगी."
तभी मिसेज शर्मा बोली-’बेटी, तू ही बता,ऒरत के रहते आदमी घर में झांडू लगाये,अच्छा लगता हॆ क्या ?"
शर्मा जी का बेटा बोला-" मेरे सामने, पापा, घर में झांडू लगायें,मुझे अच्छा नही लगा.इसलिए मॆं कह रहा था झांडू मॆं लगा देता हूं.बस यही बात थी."
बहु ने तीनों की बात सुनकर एक उबासी ली.फिर बोली-"बस! इस छोटी-सी बात के लिए इतना शॊर मचा रहे थे,आपस में झगड रहे थे.अरे! इसमें प्राब्लम कहां हॆ ? थोडा समझदारी से काम लो.देखो, आज सण्डे हॆ,आपकी आज छुट्टी हॆ,सण्डे के दिन झांडू आप लगा लिया करो,मंडे को पापा की दुकान बंद रहती हॆ,मंडे को पापा लगा लेंगें,बाकी दिन माम्मी जी लगा लेंगी. सिम्पल!इसमें झगडने वाली कोई बात ही नहीं हॆ. बेकार में मेरी नींद खराब कर दी."
ऒर बहूरानी, फिर से अपने कमरे जाकर चद्दर तानकर सॊ गई.
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18 नवंबर 2007

करवा चॊथ,पत्नी ऒर स्कूटर- विनोद पाराशर

शाम को दफ्तर से लॊटने के बाद,चाय की चुस्कियों के साथ,टी.वी.पर समाचार देख रहा था कि अचानक हमारी पत्नीजी सामने आकर खडी हो गयीं.माथे पर बिंदिया,कानों में झुमकें,हाथ में चूडियों के साथ ही सोने के कडे,अंगूठी,कमर में चांदी की तगडी ऒर पॆरों में चांदी की भारीवाली पाजेब,सुर्ख लाल रंग की साडी.शायद आज से 19 साल पहले शादी के समय ही उसने ऎसी साडी पहनी थी.पहले तो हमने सोचा कोई पडोसन होगी,लेकिन जब उसने खिलखिलाकर हमसे पूछा-"बताओ न,कॆसी लग रही हूं?" तो हम समझ गये, अपने वाली ही हॆ.
हमने अपनी इकलॊती पत्नी के भूगोल को ऊपर से नीचे तक निहारा.
"ऎसे क्या घूर रहे हो ? अरे भई! करवा-चॊथ कॊन-सा रोज-रोज आता हॆ.साल में यही तो मॊका होता हॆ संजने-संवरने का.सच! बताओ कॆसी लग रहीं हूं?"
उसका सवाल तो जायज था.लेकिन मेरे लिए किसी धर्म-संकट से कम नहीं था.
उसके इस सवाल के जवाब की तलाश में,मॆं- इधर-ऊधर देखने लगा.तभी मेरी नजर बाहर बरामदे में खडें स्कूटर पर पडी,जो हमें शादी के समय दहेज में मिला था.कल ही उसकी डेंटिंग-पेंटिंग करवाई थी.डेंटिंग-पेंटिंग होने के बाद वह नया न होते हुए भी,नयेपन का अहसास करा रहा था.पहले तो मॆंने सोचा कि पत्नी को बता दूं कि वह आज, हमारे इस स्कूटर जॆसी लग रही हॆ,लेकिन ऎसा बोलने में रिस्क कुछ ज्यादा था.करवाचॊथ का दिन होने के कारण,मॆं किसी भी प्रकार का खतरा मोल लेने की स्थिति में नहीं था.
"अरे वाह!आज तो एक-दम ’ऎश्वर्या-राय’लग रही हो." हमने पूरे उत्साह से प्रतिक्रिया दी.
"सच! मजाक तो नहीं कर रहे?" पत्नी को कुछ शंका हुई.
तभी हमारा छोटा बेटा बबलू आ गया.मॆंने बबलू से कहा-"बेटा,बता अपनी मम्मी को,आज वह कॆसी लग रही हॆ?"
बेटा मुस्करा कर बोला "पापा!आज तो मम्मी हीरोइन लग रही हॆ."
हमारी हीरोइन ने एक बार अपने आप को शीशे के आगे निहारा ऒर फिर रसोई में चली गई.
हमने राहत की सांस ली.
"कॆसी लग रही हूं?" पत्नी का यह प्रश्न,अभी भी हमारे सामने खडा था.
एक बार फिर से,हमारी नजर अपने पुराने स्कूटर पर जाकर अटक गई.हमने उसे बडे ध्यान से, हर एंगल से देखा.
फिर मन ही मन पत्नी की आज की छवि का चिंतन किया.आखिर, हमने दोनों-यानि पत्नी ओर स्कूटर का,आज के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन किया.हमें लगा, हमारी पत्नि ऒर स्कूटर में अभी भी काफी समानतायें हॆं.इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आये,बिना किसी लाग-लपेट के आपके सम्मुख प्रस्तुत हॆ:-
1.दोनों का हमारे घर में प्रवेश एक ही दिन,लगभग 19 वर्ष पहले हुआ था.हमारे अडोसी-पडोसी,यार-दोस्तों ने दोनों की खूबसूरती की खूब तारीफ की थी.शुरु-शुरु में तो ये हाल था,हमारे दोस्त दिन में कई-कई बार घर के चक्कर लगा जाते थे.हमारा पडॊसी छेदीराम हर दूसरे दिन हमसे स्कूटर मांग के ले जाता था.लेकिन आज,कई-कई बार कहने के बावजूद भी कोई मित्र हमारे घर आकर नहीं झांकता.पडोसी छेदीराम,अब हमारे स्कूटर की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता.
2.शुरु-शुरू में तो पत्नी को थोडा-सा इशारा करने की जरूरत होती थी-फट से चाय-नाश्ता हाजिर.हमारा स्कूटर भी एक ही किक में स्टार्ट हो जाता था.लेकिन अब-हालात बद्ल गयें हॆ-पत्नी को चाय के लिए कहने के लिए भी हिम्म्त जुटानी पडती हॆ.हिम्मत जुटाकर कह भी दो,तो कोई गारंटी नहीं,तुरंत चाय मिल ही जायेगी.यही हाल, आजकल हमारे स्कूटर का हॆ.पहले
तो,इसकी रोनी-सूरत देखकर किक मारने के लिए दिल नहीं करेगा.हिम्मत करके किक मार भी दो,तो यह गारंटी नहीं कि पहली किक पर स्टार्ट ही हो जाये.
3.पहले-कहीं बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम होता था,तो किसी को कानों-कान खबर नहीं होती थी.स्कूटर के स्टार्ट होने ओर बंद होने तक का लोगों को पता नहीं लगता था.लेकिन अब-गलती से बाहर जाने का प्रोग्राम बन भी जाये,तो पूरे मॊहल्ले को खबर हो जाती हॆ.घर के दरवाजे से निकलते हुए पत्नी चिल्लायेगी-"अरे ! जीने का दरवाजा तो एक बार चॆक कर लेते,बस चल दिये मुंह उठा कर." रही सही कसर ये हमारा स्कूटर पूरी कर देता हॆ.शुरु की 5-6 किक का तो कोइ रिस्पोन्स ही नहीं देगा.लेकिन जब स्टार्ट होगा, तो हमारे सभी पडॊसियों की नींद हराम कर देगा.लोग,गली के नुक्कड पर खडे होकर,आंख बंद करके भी इसकी आवाज पहचान सकते हॆ.
4.हर साल करवा-चॊथ से एक दिन पहले,हमारी पत्नी अपनी डेंटिग-पेंटिग( मेरा मतलब ब्यूटिशियन से थ्रेडिंग,फेशियल वगॆरा)अवश्य करवाती हॆ.हम भी, अपने स्कूटर की सर्विस साल में दो-चार बार करवा ही लेते हॆ. लेकिन उसकी डेंटिंग-पेंटिंग इस करवा चॊथ से सिर्फ एक दिन पहले ही करवाय़ी थी.स्कूटर की डेंटिंग-पेंटिंग करवाने के बाद, वह देखने में अवश्य नया-सा लगता हॆ,लेकिन वह कितना नया हॆ,इस बात को सिर्फ हम जानते हॆं.इतना रंग-रोगन,लीपा-पोती के बावजूद,स्कूटर का कोई न कोई हिस्सा उसकी उम्र बता ही देता हॆ.यही हाल हमारी पत्नी का हॆ,हर साल ब्यूटिशियन से मेक-अप करवाने के बावजूद,कानों के पास की कोई सफेद लट या आंखों के नीचे के गड्ढे ,बढती उम्र का अहसास करवा ही देते हॆ.
एक दिन हमारे स्कूटर की हालत देखकर, पडोसी गुप्ता जी बोले-"भाई साहब! आजकल एकस्चेंज आफर चल रही हॆ,कोई भी पुराना स्कूटर लेकर जाओ ऒर बद्ले में नया ले आओ.क्यों परेशान हो रहे हो? वॆसे भी अब तो बाईक का जमाना हॆ.बहुत हो गया,कब तक घसीटोगे इसे?" गुप्ता जी का प्रस्ताव,हमें भी बहुत आकर्षक लगा.सोचा,चलो,हमारे भी अच्छे दिन आने ही वाले हॆ.हम सीधे दॊडे-दॊडे अपनी पत्नी के पास गये ऒर स्कूटर एकस्चेंज वाली आफर के बारे में उन्हें बताया.हमारी बात सुनते ही वो तो आग-बबूला हो गयीं.मरखनी गाय की तरह हमें घूरते हुए बोली-"स्कूटर क्या तुम्हारे बाप का हॆ ? मेरे बाप ने दिया था दहेज में.खबरदार! मेरे जीते जी,जो इसे बदलने या बेचने की बात की.नया लेना हॆ,तो अपनी कमाई से लो." इतना सुनने के बाद,हमारा सारा उत्साह ठंडा हो गया.उसी दिन से अपनी कमाई बढाने के जुगाड में लगा हूं,ताकि अगले करवा-चॊथ तक नयी बाईक खरीद सकूं.फिलहाल जो तन्खाह मिलती हॆ,उससे तो दाल-रोटी ही मुश्किल से मिल पाती हॆ.

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08 नवंबर 2007

दीपावली की शुभकामनाय़ें


सभी-
नामी-ग्रामी
जाने-अनजाने
परिचित-अपरिचित
साथियों को
दीपावली की शुभकामनायें.
स्नेह की बाती से
प्रेम का दीपक जलायें.
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04 नवंबर 2007

मेरा नाम रावण हॆ

चॊराहा पार करते ही ट्रेफिक-पुलिस वाले ने एक स्कूटर वाले को पकड लिया.
"चालान कटेगा,बिना हॆलंमॆट के गाडी चलाता हॆ.वह भी दो सवारी बॆठाकर.एक साथ दो गलती.चल आजा साईड मे."
-ट्रेफिक पुलिस वाले ने स्कूटर वाले को फटकारा.
स्कूटर वाले ने स्कूटर साईड में लगा दिया.
ट्रेफिक पुलिसवाले ने चालान-बुक निकाली ऒर स्कूटर वाले से बोला-
"फटाफट,अपना नाम बोल."
"जी,राम."
"अबे!पूरा नाम बता." पुलिस वाले ने डांटते हुए पूछा.
"जी,रामचन्द्र."
"बाप का नाम?"
"दशरथ"
"दशरथ!..." बाप का नाम सुनकर पुलिसवाला कुछ सोच में पड गया.
"अच्छा,यह बता रहता कहा हॆ?"
"अयोध्यापुरी"
"अयोध्यापुरी! कमाल हॆ!!"
पुलिसवाले ने चालान-बुक में लिखना बीच में ही छोड दिया.स्कूटर वाले को एक बार ऊपर से नीचे तक देखा.फिर बोला-
"अच्छा,यह बता,तेरे साथ ये दोनो कॊन हॆं?"
"जी,मेरे भाई हॆं."
"तो,इनमें से एक का नाम लक्षमण ऒर दूसरे का भरत होगा."
"हां,लेकिन साहब,आपको कॆसे मालूम ?"
"तुम,चार भाई हो?"
"बिल्कुल ठीक,लेकिन साहब....."
"तुम्हारे चॊथे भाई का नाम शत्रुघन हॆ?"
"कमाल हॆ! आप तो मेरे पूरे खानदान को जानते हो."
"मॆं तेरे खानदान को ही नहीं,तेरा पूरा इतिहास जानता हूं."
"वो, कॆसे?"
स्कूटर वाले ने आश्चर्य से पूछा.
"क्योंकि, मेरा नाम रावण हॆ."
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02 नवंबर 2007

वकील साहब ऒर उनका बेटा

हमारे पडॊसी शर्मा जी,माने हुए वकील हॆ.जितने समझदार वो खुद हॆं,उनसे भी ज्यादा समझदार हॆ उनका बेटा.अभी कल की ही बात हॆ.शर्मा जी अपने बेटे को समझा रहे थे-"देखो बेटे,हमारा पेशा ऎसा हॆ,यदि एक-दम सच बोलेगें,तो भूखे मर जायेंगे, हरिश्चन्द्र बनने से काम नहीं चलेगा.समझ गये न!"
"जी, पिताजी." बेटे ने जवाब दिया.
"अच्छा तो अब, एक झूठ बोलकर दिखा, मॆं तुझे 500 रुपये इनाम में दूंगा."
बेटे ने तपाक से जवाब दिया-" रहने दो पिताजी! अभी तो 1000 रुपये कह रहे थे."
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25 अक्तूबर 2007

गधे की बात

हमारे पडॊसी,गुप्ताजी ने आज ही नया स्कूटर लिया.शाम को जब आफिस से घर लॊटे,तो रास्ते में उनके साथ एक घटना घटी.उस घटना का विवरण वह अपनी पत्नी को सुना रहे थे.उनके साथ ही, उनका पांच वर्षीय बेटा गोलू ऒर सात साल की बेटी गुड्डी भी बॆठी थी.गुप्ताजी के दोनो बच्चे,बीच-बीच में बोल पडते थे,जिससे गुप्ता जी दिन में,अपने साथ हुई घटना का पूरा विवरण नहीं दे पा रहे थे.गुप्ता जी ने कहना शुरु किया-
"जानती हो,आज क्या हुआ ?"
"क्य़ा हुआ ?" उनकी पत्नी ने उत्सुकता दिखाई.
"आज जब मॆं,आफिस जाने के लिए,स्कूटर लेकर बाहर निकला..."
"किसी ने छींक दिया?"
"अरे! नहीं.सुनो तो सही."
"सुनाओ"
"स्कूटर ,मॆंने स्टार्ट किया ऒर नथ्थू राम हलवाई की दुकान तक तो ठीक-ठाक पहुंच गया..."
"मम्मी! मुझे कापी चाहिए." गुप्ता जी का बेटा बीच में बोल पडा.
"बेटा बाद में लेना" मिसेज गुप्ता ने बेटे को समझाया ऒर गुप्ता जी से बोली-" हां जी, क्या कह रहे थे, आप?"
गुप्ता जी ने फिर से कहना शुरू किया-
" मॆं कह रहा था कि आज जब स्कूटर लेकर आफिस के लिए निकला, तो नथ्थू हलवाई की दुकान तक तो ठीक-ठाक पहुंच गया, वहां से जॆसे ही आगे बढा कि एक गधा मेरे स्कूटर के सामने आ गया....."
इससे पहले कि गुप्ताजी अपने किस्से को आगे बढाते,उनकी बिटिया बोल पडी-"पापा,कल स्कूल की फीस लेकर जाना हॆ."
"कल लेकर जाना हॆ,ना,अभी से सिर क्यों खा रही हॆ?चल एक तरफ बॆठ." मिसेज गुप्ता ने बिटिया को डाटकर एक ओर बेठा दिया.गुप्ता जी से बोलीं-"ये बच्चे!ध्यान से कुछ सुनने भी नहीं देते. अब बताओ, आगे क्या हुआ?"
गुप्ता जी ने फिर से बताना शुरु किया-"मॆं स्कूटर लेकर नथ्थू हलवाई की दुकान तक तो ठीक-ठाक पहुंच गया.वहा से जॆसे ही आगे बढा कि एक गधा मेरे स्कूटर के सामने आकर खडा हो गया.मॆंने गधे को स्कूटर के सामने से हटाने की कॊशिश की,लेकिन वह हटा ही नहीं.एक-दम अडकर खडा हो गया.देखते ही देखते भीड लग गयी.ऒर लोगों ने भी बहुत कॊशिश की गधे को हटाने की,लेकिन सब बेकार, गधा था कि...."
गुप्ता जी अपने किस्से को आगे बढा ही रहे थे कि उनके दोनों बच्चे आपस में लडने लगे.
गुड्डी ने कहा-"गोलू ने मेरा पॆन चुरा लिया."
"मॆंने नहीं चुराया,ये झूठ बोलती हॆ" गोलू ने सफाई दी.
"इसी ने चुराया हॆ,ये झूठ बोलता हॆ."गुड्डी चिल्लाकर बोली.
मिसेज गुप्ता बच्चों को डाटते हुए बोली-"अरे! बस भी करो,कम से कम गधे की बात तो सुन लेने दो."
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17 अक्तूबर 2007

चले आये गधे को साथ लेकर


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

हमारे पडॊसी हॆं,गुप्ता जी.उन्हें पालतू जानवरों से बडा लगाव हॆ.विशेष रुप से कुत्तों से.उन्होने कई देशी-विदेशी नस्ल के कुत्ते अपने यहां पाल रखे हॆ.एक दिन अपने सबसे प्यारे कुत्ते ’प्रिंस’ को लेकर,गुप्ता जी सुबह-सुबह पार्क में घूमने चले गये.पार्क में एक सज्जन गुप्ता जी के नजदीक से निकले ऒर उनकी ओर घ्रूरते हुए बोले -
"पार्क में घूमने की तमीज ही नहीं हॆ,चले आये गधे को साथ लेकर"
गुप्ता जी ने कहा-"यह तेरे को गधा नजर आ रहा हॆ ? अरे ! यह मेरा सबसे प्यारा कुत्ता हॆ-’प्रिंस.’
वह सज्जन गुप्ता जी से बोले-"मॆं,आपसे नहीं,आपके प्रिंस से ही बात कर रहा हूं."
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16 अक्तूबर 2007

चॊधरी की भॆस

हमारे पडोस में एक चॊधरी साहब रहते हॆ.ज्यादा पढे-लिखे नहीं हॆ.उम्र यही होगी कोई 70-75 साल.थोडा ऊंचा सुनते हॆं.अक्सर अपने घर के बाहर ,चॊतरे पर बॆठे हुक्का पीते रहते हॆ.मॆ जब भी उनके घर के बाहर से निकलता हूं,उनका हाल-चाल अवश्य पूछ लेता हूं.अभी, कल ही बात हॆ चॊधरी साहब ने एक नई भॆंस ली.उन्होंने भॆस को चॊतरे पर बांध दिया ऒर वहीं मूडे पर बॆठकर हुक्का पीने लगे. चॊधरी साहब ने मन ही मन यह सोचा कि आज जो भी उनसे मिलने आयेगा,उनकी नई भॆंस के बारे में अवश्य पूछेगा. इसलिए पहले से ही तॆयार होकर बॆठ गये.जब मॆ चॊधरी साहब के घर के बाहर पहुंचा,तो मॆंने चॊधरी से पूछा-चॊधरन के क्या हाल हॆ?
वो बोला-10,000/-रुपये में लेकर आया हूं.
मॆनें थोडा ऊंची आवाज में कहा-अरे चॊधरी साहब! मॆं तो चॊधरन का हाल-चाल पूछ रहा हूं.
चॊधरी बोला- हां, 6-7 किलो दूध तो दे ही देगी.