क्या कहा ? शुगर यानि डायबीटीज हॆ. तो भई! रसगुल्ले तो आप खाने से रहे.मॆडम! आपकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही. क्या कहा, ब्लड-प्रॆशर हॆ. तो आपकी दूध-मलाई भी गयी.सभी के सेवन हेतु, हम ले कर आये हॆं-हास्य-व्यंग्य की चाशनी में डूबे,हसगुल्ले.न कोई दुष्प्रभाव(अरे!वही अंग्रेजी वाला साईड-इफॆक्ट)ऒर न ही कोई परहेज.नित्य-प्रति प्रेम-भाव से सेवन करें,अवश्य लाभ होगा.इससे हुए स्वास्थ्य-लाभ से हमें भी अवगत करवायें.अच्छा-लवस्कार !

22 मार्च 2011

’लंगोट वाले बाबा


(जो मित्र,अपने ब्लाग पर कम टिप्पणी आने से मेरी तरह दु:खी हॆ,कृपया एक बार पूरी पोस्ट अवश्य पढ ले,शायद उनका दु:ख भी कुछ कम हो जाये.)

बाबा ध्यानमग्न थे ऒर भक्तगण बेचॆन.बाबा के शरीर पर सिर्फ एक नाममात्र का लंगोट था.उनके चेलों का कहना था कि बाबा तो एक दम प्राकृतिक अवस्था में ही रहना चाहते थे,लेकिन कुछ शिष्यों ने लोक-मर्यादा का वास्ता देकर,बाबा को लंगोट पहना ही दिया ऒर वे लंगोट वाले बाबा के नाम से पोपुलर हो गये.
बाबा का आश्रम भक्तों से खचा-खच भरा था.दूर-दूर से लोग बाबा का आशिर्वाद लेने आये थे.आशिर्वाद लेने वालों में बच्चे,बडे,बूढे ऒरत व मर्द सभी शामिल थे.एक सेवादार ने बताया कि होली व दीवाली को यहां बहुत भीड होती हॆ.आज होली थी-इसलिए अन्य दिनों से भीड अधिक थी.सभी भक्त अपनी अपनी मनोकामना के साथ,बाबा से आशिर्वाद लेने के लिए सुबह 4 बजे से लाईन में लगे थे.रुटिन में तो, मॆं जब तक सुबह-सुबह पत्नी से दो-चार बार डांट नहीं खां लूं,इतने बिस्तर ही नहीं छोडता, लेकिन बाबा से आशिर्वाद लेने के लालच में,आज सुबह 5 बजे ही अपनी मनोकामना दिल में सजोये, आशिर्वाद लेने वालों की लाईन में लग गया.
’लंगोट वाले बाबा की-जय!’
’लंगोट वाले बाबा की-जय!!’
अचानक बाबा के जयकारे से पंडाल गूंज उठा.मॆंने अपने साथ वाली लाईन में लगे एक भक्त से पूछा-क्या हुआ?.
वो बोला-बाबा का ध्यान पूरा हुआ,अब वे आशिर्वाद देंगें
मेरा दिल मारे खुशी के जोर-जोर से उछलने लगा.सोचा-आजतक अपने मन की जो बात,मॆं किसी  को नहीं बता सका.बाबा को बताउंगा.उनके आशिर्वाद से मेरी मनोकामना अवश्य पूरी होगी.आखिर! बहुत पहुंचे हुए हॆं-ये लंगोट वाले बाबा.
पहला नंबर-एक युवा महिला का था, जो शायद अपनी बुजुर्ग सास के साथ आई थी.बाबा अपने आसन पर जमे बॆठे थे ऒर उनके दो चेले, दाये-बांए एक-दम अलर्ट खडे हुए थे.
क्या समस्या हॆ? बाबा ने सामने खडी युवती से पूछा.युवती चुप रही.उसे अपनी समस्या बतानें में शायद कुछ संकोच था.उसके साथ खडी,उसकी सास बोल पडी-
’बाबा! इसकी शादी को 8 साल हो गये-लेकिन अभी तक...
’हां,हां-बाबा सब जानते हॆ-बच्चा चाहिए.....चल ले ले आशिर्वाद!’
बाबा कुछ नहीं बोले.लेकिन दाये खडे चेले ने कहा.
सास-बहु दोनों बाबा के सामने दंडवत.बाबा ने दोनों के सिर पर हाथ रख दिया.
दूसरे चेले ने-अगले भक्त को बुला लिया,जो एक बेरोजगार युवक था.
बाबा! एम.ए. तक पढा हूं,लेकिन नॊकरी के लिए पिछले 6 साल से धक्के खा रहा हूं .’-युवक ने बाबा के सामने अपना रोना रोया.
बाबा का चेला बोला-बेटा! जरुर हिन्दी से एम.ए. किया होगा...वर्ना कोई न कोई धंधा तो,अब तक मिल ही जाता....कोई बात नहीं,..बाबा के आशिर्वाद से सब ठीक हो जायेगा...चल तू भी ले ले-बाबा का आशिर्वाद!
एक-एक करके भक्त बाबा के सामने अपनी-अपनी समस्या रखते जा रहे थे ऒर बाबा के पास सभी मर्जों की एक ही दवा थी-वो था आशिर्वाद.किसी पति-पत्नि में झगडा था तो कहीं सास बहु में.कोई अपनी गरीबी को लेकर परेशान था तो कोई अधिक दॊलत को लेकर होने वाले पारिवारिक क्लेश को लेकर.बाबा आशिर्वाद दे रहे थे ऒर भक्त बडी श्रृद्धा से उसे ले रहे थे.मेरा नम्बर भी बस आने ही वाला था.दिल धक-धक करने लगा.
.दर-असल मेरी समस्या कुछ अलग टाईप की थी.मॆं इसी दुविधा में था कि अपने मन की बात बाबा को कॆसे समझाउंगा?तभी बाबा के एक चेले ने मुझे आवाज लगा दी-
ओ! चश्में वाले अंकल!-कहां खोया हॆ? नंबर आ गया-फटाफट बोल.
मॆंने बाबा के चरण छूए ऒर उनके दोनों शिष्यों को भी प्रणाम किया.
क्या कष्ट हॆ बच्चा? बाबा ने पूछा
मॆं एक ब्लागर हूं-बाबा’ मॆंने कहना शुरु किया.”
बाबा-पुराने जमाने के थे.शायद ब्लागिंग से अनजान थे.उन्होंने एक बार मुझे घूरकर देखा तथा दूसरी बार अपने शिष्यों की ओर.उनका एक शिष्य शायद कम्यूटर,ई-मेल, ब्लागिंग इत्यादि के बारें में जानता था.उसने बाबा को समझाने का प्रयास किया-
बाबा ये एक ब्लाग-लेखक हॆं
ब्लाग-लेखक?.... लेखक तो सुना था ये ब्लाग-लेखक नाम का नया जीव कहां से आ गया? बाबा ने आश्चर्य से पूछा?
चेले ने बाबा को फिर समझाने की कॊशिश की-
बाबा! यह मान लो कि ये भी एक तरह का लेखक ही होता हॆ-यह बात अलग हॆ कि कुछ पुरातनपंथी लेखक इसे अपनी बिरादरी में अभी भी अछूत ही समझते हॆ.
मुझे लगा बाबा को कुछ कुछ समझ आ गया.बाबा बोले-
अपनी समस्या बताओ
मॆंने फिर कहना शुरु किया-
बाबा! मॆंने कई ब्लाग बना रखे हॆं.पिछले 3-4 साल से,उनपर लिख रहा हूं.मेरे कई ब्लागर साथी हॆं, जिन्होंने अभी 1-2 साल पहले ही लिखना शुरु किया हॆ.मॆं जब भी कोई पोस्ट लिखता हूं उसपर 6-7 कमेंट्स से ज्यादा नहीं आते,जबकि मेरे अन्य ब्लागर साथियों के ब्लागों पर कमेंट्स की बाढ आ जाती हॆ.उनकी किसी-किसी पोस्ट पर तो 70-70,80-80 तक कमेंटस मिल जाते हॆं.अपने ब्लाग पर इतने कम कमेंटस ऒर दूसरे के ब्लाग पर इतने ज्यादा? यह कहां का न्याय हॆ-बाबा? मुझे बडी आत्मग्लानी होती हॆ?
कुछ ऎसा उपाय बताओ,जिससे मेरे ब्लाग पर भी थोक मेँ कमेंट्स आने लगेँ
मेंने अपने मन की सारी पीडा एक ही सांस में बाबा को बता दी.
बाबा ने एक गहरी सांस ली ऒर फिर से अपने उसी शिष्य की ओर देखा-जिसने पहले बाबा को ’ब्लाग-लेखक’ के बारे में बताया था.शिष्य बाबा का इशारा समझ गया.
शिष्य़ ने बाबा को समझाते हुए कहा-
बाबा ये नये जमाने के लेखक हॆं.वह जमाना गया जब लेखक को लिखने के लिए कागज, पॆन, पत्रिका,संपादक,प्रकाशक आदि की जरुरत पडती थी.लेखकों को अपनी रचना अखबार,पत्रिका में छ्पवाने के लिए न जाने कितने पापड बेलने पडते थे.अब तो सब कुछ फटा-फट हॆ.खुद ही लिखो ऒर खुद ही छापों.चाहे जो लिखो,चाहे जो छापो-न तो संपादक की कॆंची का डर ऒर न ही रचना वापस आने का.बस एक कम्पयूटर ऒर उसमें इन्टरनॆट का कनॆक्शन, आ गयी दुनिया मुट्टी में.इधर लिखा,उधर छपा ऒर तुरंत कमेन्ट्स.इंतजार करने का कोई मतलब ही नहीं.
बाबा,शिष्य की बात सुनकर मंद-मंद मुस्कराने लगे.मुझे लगा बाबा मेरी पीडा को समझ रहे हॆं.अवश्य ही कोई इसका उपाय बतायेंगें.मॆं बाबा के मुंह की ओर ताकने लगा.
बाबा ने पूछा-अच्छा! उन ब्लागर्स के नाम बता-जो तुझसे जुनियर हॆं लेकिन उनके ब्लाग पर कमेंटस तेरे से ज्यादा आते हॆं?
मॆं बोला-बाबा ! एक दो होता तो मॆं सब्र का घूंट पी भी लेता,लेकिन यहां तो ऎसे ब्लागरों की लाईन लगी पडी हॆ.मेरे ब्लाग पर आकर वे कभी कमेंटस भी करते हॆं,तो ऎसा लगता हॆ जॆसे मेरी खिल्ली उडा रहे हॆ.एक हॆ कोई राजकमल शर्मा-जहां मर्जी लट्ठ लेके खडा हो जायेगा,जिससे चाहे पंगा ले लेगा.कमेंट्स बटोरने के चक्कर में खुद को ही गाली देनी शुरु कर देगा.एक ऒर हॆ इसी का भाई अमित’देहाती’.वॆसे तो खुद को ’देहाती’कहता हॆ लेकिन इसने भी हम जॆसे शहर-वालों की नींद हराम कर रखी हॆ.एक ओर हॆ बाबा-जो पहले काला चश्मा लगाकर घूमता था-आजकल बिना चश्में के ही आलराउन्डर बना हुआ हॆ-अपने को सचिन तेंदुलकर से कम नहीं समझता.वो भी अच्छे-खासे कमेंटस बटोर लेता हॆ.हलद्वानी से भी एक छोकरा-पियूष-पंथ पट्ठा ऎसे ऎसे मुद्दों पर कलम चलाता हॆ कि उसे धडा-धड कमेंटस मिलते  हॆ.ऒर भी हॆं कई जिन्होंने मेरी नाक में दम कर रखा हॆ.अब किस किसके नाम बताऊं आपको?
बाबा ने बीच में ही टोका-क्या कोई महिला ब्लागर भी हॆ-जिसके ब्लाग पर तुम्हारे से ज्यादा कमेंट्स आते हो?
बाबा ने जॆसे मेरी दुं:खती रग पर हाथ रख दिया.
मॆं रोनी-सी सूरत बनाकर बोला-बाबा ! दु:ख की बात तो यही हॆ कि इस मामले में,मॆं महिलाओं से भी पिछ्ड रहा हूं.एक मॆडम हॆ जो हमेशा अपने साथ कुछ चिडियाओं को लेकर चलती हॆ,रोशनी नाम हॆ उसका.अपनी कविताओं के जरिये ही काफी कमेंटस बटोर लेती हॆ.निशा मित्तल,अल्का गुप्ता-ऒर भी कई मॆडम हॆं बाबा!
इससे पहले कि मॆं अपनी दु:ख-भरी कहानी को थोडा ओर आगे बढाता,बाबा का चेला बीच में कूद पडा.बोला-बाबा! कई ब्लागर ऎसे भी तो होंगें,जिन्हें इससे भी कम कमेंटस मिलते होंगें.
बाबा के चेले का सवाल जायज था.मॆंने अपने उन ब्लागर साथियों के बारे में तो सॊचा ही नहीं था-जिनके ब्लाग पर,मेरे से  भी कम कमेंटस आते थे.मॆंने आस-पास नजर दॊडाई-तो देखा-भाई अविनाश वाचस्पति,राजीव तनेजा,सुमित प्रताप सिंह ऒर दिक्षित जी जॆसे मेरे कई ब्लागर साथी, मुझे देखकर मुस्करा रहे थे.मुझे अब अपना दु:ख कुछ हल्का लगने लगा था.
बाबा बोले-देखो बेटा! संतोष धन सबसे उत्तम धन हॆ.जो मिला,जितना मिला उसी में संतोष करों.संसार का हर व्यक्ति विशेष हॆ.एक की तुलना दूसरे से नहीं की जा सकती
.किसी में कुछ खास हे,तो किसी में कुछ कमी हॆ.सभी के अपने अपने गुण-दोष हॆं. टिप्पणी कम मिलने का मतलब यह नहीं हॆ कि तुम्हारा लेखन अच्छा नहीं हॆ ऒर यह भी जरुरी नहीं कि जिस लेख्नन को ज्यादा टिप्पणी मिली हों वह अच्छा ही हो.अधिक टिप्पणी पाने के  लालच में अपने लेखन से समझॊता मत करो.जो भी लिखो सोच-समझकर-अपने मन से लिखो-भीड के पीछे मत चलो.
बाबा की बात सुनकर-मुझे बडा शुकून महसूस हो रहा था.मन एक-दम शान्त हो चुका था.मॆंने बाबा को दंडवत प्रणाम किया.बाबा ने मेरे सिर पर हाथ फेरा.
आंख-खुली-तो देखा पत्नी जी,कंबल खींचकर हमें जगा रही थीं ऒर चिल्ला रही थीं-कॆसे आलसी आदमी से पाला पडा हॆ? त्यॊहार के दिन भी जल्दी नहीं उठ सकता?
अच्छा ! तो अब पता पडा-लंगोटवाले बाबा का आशिर्वाद-एक सपना था.
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16 टिप्‍पणियां:

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

टिप्पणी कम मिलने का मतलब यह नहीं हॆ कि तुम्हारा लेखन अच्छा नहीं हॆ ऒर यह भी जरुरी नहीं कि जिस लेख्नन को ज्यादा टिप्पणी मिली हों वह अच्छा ही हो.अधिक टिप्पणी पाने के लालच में अपने लेखन से समझॊता मत करो.जो भी लिखो सोच-समझकर-अपने मन से लिखो-भीड के पीछे मत चलो.
Sahi Salah.
Pajame wale baba bhi yahi kahte hain.
Nice post.
Thanks.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

अच्‍छा लिखेंगे तो चाहे कम ही टिप्‍पणी मिले, पर न भी मिले तो अच्‍छा लिखने वाला तो सब्र कर लेता है परंतु जो अच्‍छा नहीं लिखता, वो अच्‍छा भी नहीं होता और सब्र भी नहीं करता। फर्जी अर्जी नामों से कमेंट भर लेता है।

अब आप बतलायें,आप क्‍या करेंगे ? एग्रीगेटर का न होना भी एक कारण है परन्‍तु स्‍थाई कारण कमेंट करने वालों का होली खेलने चले जाना, आपकी पोस्‍ट का नंबर सबसे बाद में आना, फिर आपका किसी की पोस्‍ट की तारीफ में कसीदे न पढ़ना और सबसे अधिक कमेंट में अपने लिंक न छोड़ना जैसे कई मूलभूत कारण हो सकते हैं। आप इस संबंध में ब्‍लॉग ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया से संपर्ककर सकते हैं।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीय विनोद पाराशर जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

लंगोट वाले बाबा की जय !बहुत अच्छा लिखते हैं आप , … और इतनी मेहनत से भी ।
बहुत बहुत बधाई !

अविनाश वाचस्पति जी का कहा हुआ बहुत महत्वपूर्ण है … ग़ौर कीजिएगा , और बहुत बहुत मंगलकामनएं स्वीकार कीजिएगा …

* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Astrologer Sidharth ने कहा…

ऐसा नहीं है कि

Astrologer Sidharth ने कहा…

आपको कमेंट नहीं मिलते

Astrologer Sidharth ने कहा…

बल्कि आपको जो कमेंट मिलते हैं

Astrologer Sidharth ने कहा…

वे इतने ठोस हैं कि

Astrologer Sidharth ने कहा…

ज्‍यादा कमेंट की जरूरत ही नहीं है :)

Astrologer Sidharth ने कहा…

उम्‍दा लेख या कहें उम्‍दा दारुण कथा एक उदीयमान या कुछ समय पहले उदय हो चुके या अपने ही तेज में तप रहे ब्‍लॉगर की... :)

S.N SHUKLA ने कहा…

खूबसूरत प्रस्तुति .
स्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

अधिकतर लोगों के दुख को बयान कर दिया है सर।

सादर

Satish Saxena ने कहा…

बाबा ने भेजा है कि विनोद पराशर को कमेन्ट देकर आयें ! बधाई भैया बाबा को पटाने की ...
यह लो एक कमेन्ट बिना पढ़े ....
शुभकामनायें आपको !

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

acha laga aapka lekh ...bahut2 badhai..

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

विनोद अंकल,आपकी व्यथा पढ़ी कलम घिस्सी को बहुत अच्छी लगी.

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

विनोद अंकल,आपकी व्यथा पढ़ी कलम घिस्सी को बहुत अच्छी लगी.

विनोद पाराशर ने कहा…

चिंता न करो,बिटिया संगीता,कुछ दिन ऒर कलम घीस लोगी,तो तुम्हें भी यह व्यथा अपनी सी लगने लगेगी.